Book Title: Jain Hiteshi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 369
________________ Tr 44 उप गया ! ...... छप गया।। छप गया !! अनियोंकी इच्छा पूर्ण अपूर्व आविष्कार! न भूतो न भविष्यति' जनियाकी इच्छा जैनार्णव S १) रुपया १०० जैन पुस्तकें। हमारी बहुत दिनों से यह इच्छा थी कि एक ऐसा पुस्तकोंकार संग्रह उपाचा, आय जो कि यात्रा व परदेशमें, एक ही पुस्तक पारर नसे सब मताच निकल जाया करें । बाज ने अपने भाइयोको बुधक ना सुनाते है कि उक्त पुस्तक में जनार्णव पर तयार हो गया। हमने सर्व भाज्या लाभार्थ उन १ पुस्तकाको इकार पाया है पतिसमको मूल्य सिर्फ १) जमा है। भने पुस्तके यदि पुदकर लीदी जाये सोकरीब ३) के होगी। पवर्ग या एक पुल-पास रखना काफी मोगा ये भी मौत विमाने पुट काज पर मुन्दर बाग पा है। पर मिला। करने मजबूत और सुन्दर टिल न न्दी का योकि हमारे गाम का मित आधी । पन्त, बाकी रह गई ३ नही 10 दिन में रि पाओगे की की पुस्तक का : . :

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