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हजारों रोग दुख सहते, विना उपचारके मरते, दयामृत इन पै वरसाके, करो सब देशकी सेवा ॥७ सुदुस्तर रूढ़ि-दलदलसे, उबारो, सत्यके वलसे, दिखाओ धर्मके पयको, करो सब देशकी सेवा ॥८ बनो उत्साहसे ताजे, बजाओ ऐक्यके वाजे, गिरीको भी उठा करके, करो सब देशकी सेवा ९ बनो पहले स्वयं सच्चे, बनामो और फिर अच्छे, यही हट नीव घर करके, करो सब देशकी सेवा ॥१० सदा जीता नहीं कोई, मरा परहित जिया सोई, समझ अमरत्व इसको ही, करो सब देशको सेवा ॥११ उठो, जागो, कमर कसलो, “क्षणिक सुखमोहको तज दो, कसम भगवानकी तुमको, करो सब देशकी सेवा ॥१२ परम कर्तव्य 'जन-सेवा, परम सद्धर्म 'जनसेवा' । समझकर भाइयो मेरे, करो सब देशकी सेवा ॥१२॥
- जनहितेच्छु। '
मीठी मीठी चुटकियाँ।
१. कैलाशयात्रा। खबर है कि जैनामित्रके सम्पादक ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी कैलाशकी यात्राके लिए जानेवाले हैं। उनके पास ब्रह्मचारी लामचीदासकी • मृत आत्माको आग्रहपूर्ण पत्र आया है । वे लिखते है कि सगर
राजाके पुत्रोंकी खोदी हुई खाईको हमने आपके लिए पाट कर तैयार कर रक्खा है!