Book Title: Jain Hiteshi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 327
________________ २९५ कदन्त नामका एक जबर्दस्त डकैत था। वह अपने दुष्टकर्मोंका पश्चात्ताप किये बिना ही मर गया, इससे नरकमें जाकर नारकी हुआ। अपने बुरे कमोंके असह्य कष्ट उसने अनेक कल्पपर्यन्त भोगे, परन्तु उनका अन्त नहीं आया। इतनेमें पृथ्वीपर बुद्धदेवका अवतार हुआ। इस पुण्य समयमें उनके प्रभावकी एक किरण नरकमें भी पहुंची। नारकियोंको आशा होगई कि अब हमारे दुःखोंका अन्त आया । इस प्रकाशको देखकर कदन्त उच्चस्वरसे कहने लगा-हे भगवन् , मुझपर दया करो, मुझपर कृपा करो, मैं यहाँ इतने दु.खोंसे घिर रहा हूँ कि उनकी गणना नहीं हो सकती। यदि मै इनसे छूट जाऊँ तो अब सत्यमार्गपर अवश्य चढ़ेगा। हे भगवन् मुझे संकटसे छुडानेमें मदद करो। प्रकृतिका नियम है कि बुरे काम नाशकी ओर जाते हैं। बुरे काम या पाप सृष्टिनियमसे विरुद्ध हैं, अस्वाभाविक है, इसलिए वे बहुत समय तक नहीं टिक सकते-उनका क्षय होता ही है। परन्तु भले काम, दीर्घजीवन और शुभ आशाकी ओर जाते हैं। क्योंकि वे स्वाभाविक हैं। अर्थात् पापकर्मोका तो अन्त है, परंतु पुण्यकर्माका अन्त नहीं। जिस तरह बाजरेके एक दानेसे उसके भुट्टेमे हजारों दाने लगते है और आगे परंपरासे वे और भी अगणित दानोंकी सृष्टि करते है, उसी तरह थोडासा भी भला काम हजारो भले कामोंकी बढ़वारी करता है और परम्परासे चे भले काम और भी अगणित भले कामोंके सृष्टा होते है। इस तरह भले कामोंसे जीवको जन्म जन्ममें इतनी दृढता प्राप्त होती है कि वह अनन्तवीर्य बुद्ध होकर निर्वाण पदका भागी होता है। कदन्तका आक्रन्दन सुनकर दयासागर बुद्धदेव बोले-क्या तूने कभी किसी जीवपर थोडीसी भी दया की हैं ? दया अब शीघ्र ही

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