Book Title: Jain Hiteshi
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 295
________________ धीरे कम हो रही है । १९०१ में वह प्रति सैकड़े ५८ कम हुई थी और अवकी मनुष्यगणनामें भी प्रति सैकड़ा ६.४ कम हो गई है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है जैन लोग हिन्दूसमाजव्यवस्थाके अनुयायी हैं। इसलिए उनका झुकाव अकसर अपनेको हिन्दू कहलानेकी और रहता है । अभी अभी उनमेंसे कुछ लोग आर्यसमाजमे जाकर मिल गये हैं। पंजाब, वायव्य प्रान्त और बम्बईके जैनोंका . झुकाव हिन्दुओंके त्योहार तथा पर्व पालनेकी और विशेष है, इसलिए धीरे धीरे उनका हिन्दूधर्ममें मिल जाना संभव है । इन दश वर्षों में उनकी संख्या वायव्यप्रान्तमें प्रतिशत १०.५, पजाबमे ६.४ और बम्बईमें ८.६ कम हुई है । बडोदाराज्यके अधिकारियोंका मत है कि बड़ोदाराज्यमें जो प्रतिशत १० की कमी हुई है वह लोगोंके दूसरे देशोंको चले जानेके कारण हुई होगी। इसीप्रकार अभी हाल ही जो मनुष्यगणना की गई है उससे मालूम होता है कि कुछ लोगोंने अपनेको.हिन्दू बतला दिया होगा। परन्तु यह ठीक नहीं मालूम होता। मध्यप्रान्त और बरारमे भी फिरसे मनुष्यगणना की गई है, परन्तु उससे यही कहना पड़ता है कि कुछ लोग परधर्मानुयायी बन गये है। जैसे कि आकोला जिलेके कासार और कलार जातिके जैन हिन्दुओंमें मिल गये है। मध्यभारतमे.जो प्रतिशत २२ की कमी हुई है उसके विषयमें भी यह कहना ठीक नहीं कि वह भी बडोदाके समान लोगोके विदेश जानेके कारण हुई होगी। हमारी समझमे उनकी यह कमी प्लेगके कारण हुई है। इसमे जरा भी सन्देह नहीं । क्योंकि जैन लोग शहरोमें ही कसरतसे रहते हैं और उनकी सघन वस्तियाँ बारबार प्लेगके 'मुखमे पड़ जाया करती हैं। रिपोर्टके इन मन्तव्योंपर जैनोका विचार करना चाहिए।

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