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उनके चलानेके लिए योग्य पुरुष नही मिलते। जिस संस्थाको देखिए उसीमें योग्य पुरुषोंकी कमी दिखलाई देती है। क्योंकि अभी तक उच्चशिक्षाप्राप्त अनुभवी सदाचारी और स्वार्थत्यागी पुरुषोंका ध्यान ही इस ओर नहीं गया है। हमको भय है कि यदि यही दशा और कुछ समय तक रही और उपर्युक्त अर्द्धदग्ध विषकुम्मपयोमुख चरित्रहीन महात्माओंके ही हाथमें संस्थाओंकी बागडोर बनी रही तो लोगोंके बढ़ते हुए उत्साह और औदार्यपर बड़ा भारी धक्का लगेगा और उन्नतिके मार्गमें हम फिरसे पिछल जावेंगे। क्या इस समय भी शिक्षित जनोको हमारी इन संस्थाओंपर दया न आयगी?
५.जैनसिद्धांतभास्कर । जैनसिद्धान्तभास्करके पहले अंकोंको और उसके कार्यकर्ताओंके उत्साहको देखकर हमने समझा था कि जैनसमाजमे अपने ढंगका यह एक निराला ही पत्र होगा; और ऐतिहासिक लेख प्रकाशित करके लुप्त जैन इतिहासका उद्धार करेगा; परन्तु देखते है कि हमारी यह आशा निराशामें परिणत हो रही है। त्रैमासिक होकर भी उसके वर्षों तक दर्शन नहीं होते है। लगभग ढाई वर्षमें उसकी केवल दो प्रतियों या तीन अंक प्रकाशित हुए हैं। चौथा अंक कब तक प्रकाशित होगा, इसका अभी तक कुछ ठिकाना नहीं है। हम आशा करते है कि जैन सिद्धान्तभवन, आराके सचालकगण इस ओर दृष्टि डालेगे और जैनसमाजके इस अभिनवपत्रको समयपर निकालनेकी चेष्टा करेंगे। इस नोटके छप चुकनेपर- जैनमित्रसे मालम हुआ कि भास्करका चौथा अंक प्रेसमें जा चुका है। खुशीकी बात है।
६. जैनतत्त्व-प्रकाशक । इटावाके जैनतत्त्वप्रकाशकके भी सात आठ महिनेसे दर्शन नहीं हुए है। बीचमें सुना था कि कई महिनोंका एक संयुक्त अंक निकलनेवाला