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मिलते तो कौन जानता कि जैनधर्मका प्रचार किसी समय उडीसामें भी बहुलतासे था ।*
चट्टानों के अतिरिक्त कुछ लेख शिल्पकारों द्वारा बनाये हुए स्तंभोंपर मिलते है। ये स्तंभ आकारमें गोल हैं और बहुत ऊँचे हैं। इनमें महाराजा अशोकके स्तंभ अधिक प्रसिद्ध हैं। ये स्तंभ इलाहाबाद, दिल्ली, जिला चंपारन (बंगाल) इत्यादि स्थानोंमें हैं। इनके लेखोंसे महाराजा अशोककी शासन और धर्मसंबधी बहुतसी बातोंका परिचय मिलता है। अन्य स्तंभ मैसूर, बीजापूर, मालवा आदि स्थानोंमें हैं।
बहुतसे लेख इमारतोंपर भी मिले हैं। डाक्टर फुहररको मथुरामें कंकाली टीलेके खोदे जानेपर बहुतसी इमारतें और लेख मिले। इनसे कई जैनमंदिरों और स्तोंका परिचय मिला है। जिनपर कई अत्यंत प्राचीन जैनधर्मसंबंधी लेख हैं । बौद्धोंके भी बहुतसे स्तूप हैं। ये स्तूप ईंट और पत्थर दोनोंहीके बने हुए है। इनमे भूपाल राज्यमें सांचीके स्तूप सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यहाँका सबसे बड़ा स्तूप ३५ गज लम्बे व्यासके वृत्तपर बना है, और १५ गज ऊँचा है। ये स्तूप बहुधा उलटे हुए कटोरेके आकारके बने हुए हैं। इलाहाबादके दक्षिणमें बरहुतमें भी एक विशाल स्तूप है। इन स्तूपोके बाहरी भाग और फाटकोंपर अनेक लेख, चित्र और मूर्तियाँ हैं जिनसे बहुतसे प्राचीन राजाओंका पता लगा है। इन स्तूपोंके भीतर भी कुछ कम ऐतिहा
* जैन शिलालेखोंका विस्तृत वृत्तात 'जैनहितैषी' के श्रावण वीर स० २४३८ के अकमें या 'जैनशासन 'के वी० स० २४३८ के खास अक (पृष्ठ १२९-१३२) में देखो।
ये लेख अब लखनऊके अजायबघरमें रक्खे हुए हैं।
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