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जाति उपजातिकी संख्या बहुत ही कम हो गई है । एक उपजाति विवाहके लिए अपने ही भीतर सीमाबद्ध रहती है दूसरी उपजाति या जातिसे वह सम्बन्ध नहीं कर सकती और इससे बहुत स्थानोमे न तो योग्य वर मिल सकते है और न योग्य कन्यायें ही मिल सकती है। लाचार बेजोड़ या अयोग्य विवाहोंसे गृहस्थजीवन अतिशय दुःख-. पूर्ण बनाया जाता है। इसके सिवा बहुतसे वर कन्याओंका रक्तसम्बन्ध अतिशय निकटका हो जाता है और इससे प्राचीन ऋषियोंकी आ-. ज्ञाका पालन नहीं हो सकता है। शरीरशास्त्रज्ञ विद्वानोका सिद्धान्त है कि रक्तसम्बन्ध जितना ही दूरका होगा उतना ही अच्छा होगा। निकटका रक्तसम्बन्ध वंशवृद्धिका बहुत बड़ा घातक है। इस विपत्तिसे उद्धार पानेके लिए आवश्यक है कि उपजातियों और जातियोंका विवाहसम्बन्ध जारी कर दिया जाय । इसके द्वारा समाजका बहुत बड़ा उपकार होगा। *
आवरण। मनुष्यके पदतल (तलवे ) ऐसी खूबीसे बनाये गये थे कि खडे होकर पृथ्वीपर चलनेके लिए इससे अच्छी व्यवस्था और हो नहीं सकती थी। परन्तु जिस दिनसे जूतोका पहनना शुरू हुआ उस दिनसे पदतलोको धूल और मिट्टीसे बचानेकी चेष्टाने उनका प्रयोजन ही मिट्टी कर दिया। जिस गरजसे वे बनाये गये थे, उसे ही लोग भूल गये। इतने दिनोंतक पदतल सहज ही हमारा भार वहन करते थे, परन्तु अव पदतलोंका भार स्वय हम ही वहन करने लगे है। क्योंकि इस समय यदि हमें खाली पैर विना जूतोंके चलना पड़ता है
। एक वगला लेखका परिवतित अनुवाद ।
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