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पुस्तक-परिचय। १. प्राचीन भारतवासियोंकी विदेशयात्रा और वैदेशिक व्यापार ।-लेखक, प० उदयनारायण वाजपेयी। प्रकाशक हिन्दीग्रन्थप्रकाशकमंडली, औरैया (इटावा)। पृष्ठ संख्या ७२ । मूल्य आठ आना । यह पुस्तक बड़े ही महत्त्वकी है। इसमें दश अध्याय है:१ विदेशयात्रा ( सस्कृतग्रन्थोक्त प्रमाण ), २ विदेशयात्रा (विदेशीअन्योक्त प्रमाण), ३ प्राचीन भारतवासियोंके एशिया और मिश्रमें उपनिवेश, ४ भारतवर्षीय बौद्धोका अमेरिकामें धर्मप्रचार, ५ पश्चिम एशियामें भारतवासियोका राज्य, ७ भारत और फिनिशिया देशका व्यापार, ७ भारत और उसके निकटवर्ती पश्चिमी देशोंका व्यापार, ८ भारत और मिश्रका व्यापार, ९ भारत और रोमका व्यापार, १० भारत और अन्यान्य देशोंका व्यापार । इनके पढ़नेसे अच्छी तरह विश्वास हो जाता है कि भारतवासी प्राचीन समयमें एक संकीर्ण परिधिके भीतर रहनेवाले कूपमण्डूक न थे; वे दूरसे दूर तकके देशों और द्वीपोंमें जाते थे, दूर दूर जाकर बसते थे, राज्य स्थापित करते थे, अपने धर्मोका और सभ्यताका प्रचार करते थे और इन सब कायाँसे वे आपको सर्वशिरोमणि बनाये थे। इस प्रकारकी पुस्तकोंकी इस समय बड़ी आवश्यकता है। हमारा उक्त प्राचीन गौरव हममें यथेष्ट उत्साह और कार्यतत्परताकी वृद्धि करता है । पुस्तककी भाषा मार्जित और शुद्ध है । मूल्य बहुत जियादह है । मण्डलीको इस बात पर ध्यान देना चाहिए । एक बात और भी है, वह यह कि जिस बंगला मूल पुस्तकका यह सक्षिप्त और कुछ परिवर्तित अनुवाद है उसके लेखकका नामोल्लेख भी इसमें नहीं किया गया है। बगला पुस्तकका नाम है 'भारतवासी दिगेर समुद्रयात्रा औ वाणिज्यविस्तार' !