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रहस्योंसे अपरिचित हैं । इस लिए उनके शासनचक्रको सुव्यस्थित पद्धतिसे चलानेके लिए यहाँकी सर्वसाधारण प्रजाके हाथोंकी भी आवश्यकता है।
ऐसी अवस्थामें यहाँकी साधारण जनताके लिए यह आवश्यक है कि वह आपसमे मेलजोल रक्खे, एक दुसरेके सुखदुःखोंको अपना सुख दुख समझे, परस्पर सहायता करना सीखे और समूहके हितके लिए अपने व्यक्तिगत स्वार्थीको भूल जावे। परन्तु ये सब बातें तब हो सकती है जब कि हम अपने अपने पारमार्थिक धर्मोके समान देशभक्ति या राष्ट्रप्रेम नामक एक और नवीन धर्मकी उपासनामें दत्तचित्त हों और जिस तरह एक शरीरमें अनेक अंग होते हैं और अनेक अंगोंके समूहको शरीर कहते हैं उसी तरह हम समझें कि हमारे जुदा जुदा धर्म राष्ट्रप्रेम, या देशभक्तिरूप धर्मके जुदा जुदा अंग हैं। यह नवीन धर्म ऐसा नहीं है कि इसके लिए प्रजाको अपने जुदा जुदा धर्म छोड़ देने पड़ें या अपने धर्मविश्वासमें कछ शिथिल हो जाना पड़े। नहीं, यह धर्म इतना उदार है कि सब ही धर्मों के अनुयायी इसकी उपासना कर सकते हैं।
आजकल कुछ लोगोंने इस धर्मको बदनाम कर रक्खा है। और इस कारण जहाँ सुना कि अमुक पुरुष देशभक्त है कि लोग विश्वास कर लेते हैं कि वह राजद्रोही है। परन्तु यह कहना बड़ी भारी भूल है। वास्तविक विचार किया जाय तो राजभक्त वही हो सकता है जो देश'भक्त हो । अथवा यों कहिए कि देशभक्तिका ही दूसरा नाम राजभाक्त है। क्योंकि जब तक हम देशसे प्रेम नहीं करते हैं और उस देशप्रेमके कारण अपने शासकोंको सुशासक नहीं बना सकते हैं तब तक राजभक्त कभी नहीं सकते । इसलिए इस बातकी बड़ी भारी ज़रूरत है कि प्रत्येक भारतवासी देशभक्त बननेका प्रयत्न करे ।