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२५४ अशोकके कई लेखोंमें आजीवक साधुओको गुफाओंके दान देनेका उल्लेख है।
कई लेखों में बौद्ध साधुओंको गुफाओंके दानदेनका उल्लेख है । महाराज स्कन्दगुप्तके एक स्तभ लेखमें विष्णु भगवानके निमित्त एक ग्राम दान देनेका उल्लेख है। राष्ट्रकूटवंशीय जैनधर्मानुयायी महाराज अमोघवर्षके एक लेखमें यह लिखा है कि उन्होंने घीके महसूलको राज्यकोशमें जमा न करके राज्यप्रबधके सुभातेके लिए प्रामोंके मुखियों
और महाजनोंके नाम कर दिया कि वे ही राज्यकी ओरसे उस रुप. येसे उचित कार्य किया करें। पालववंशीय राजा शिवस्कन्दके एक लेखमें ब्राह्मणोंको ग्राम दान देनेका उल्लेख है। ईसवी सन् “७५४ के एक स्तभ लेखमें एक ब्राह्मणको एक ग्रामके अर्धभाग दिये जानेका उल्लेख है और इसमें विशेषता यह है कि यह वात नागरी, और कनड़ी दोनों लिपियोंमें अलग अलग लिखी हुई है। कदववंशीय राजा काकुत्स्थवर्मनका एक लेख हलसीमें है जिससे मालूम होता है कि उन्होंने अपने श्रुतिकीर्ति नामक सेनापतिको, जिसने एक अवसर पर उनके प्राण बचाये थे, कुछ भूमि दान दी। राजा प्रवरसेन द्वितीयका एक लेख यह सूचित करता है कि उन्होंने चम्मक नामक ग्रामको एक सहस्त्र ब्राह्मणोंको दान दिया। उनमेंसे ४९ ब्राम्हणोंके नाम इस लेखमें दिये है। इनके अतिरिक्त इन लेखोंमें और विषय भी
१ विन्सेंट स्मिथने लिखा है कि ये साधु बौद्धोंकी अपेक्षा जैनियोंसे अधिक सम्बन्ध रखते हैं। डाक्टर फ्लीटने भी इनकी जैनियोंसे समानता बतलाई है, इनको नम कहा है और मक्खलि गोशालको इनका सस्थापक लिखा है। २ इस वशके कुछ राजा कदाचित् जैन थे। उन्होंने ईसाकी छठी शतादिदमें पल्लचों और -मैसूरके गगराजा पर विजय पाई और दक्षिणी महाराष्ट्र पर अपना आधिकार 'जमा लिया।