________________
CSC
NIRoad
जैनहितैषी।
श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात्सर्वज्ञनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥
-
-
-
१० वाँ भाग] पौष, श्री०वी०नि० सं० २४४०। [३ रा अंक।
-
वसन्त और बालक।
सुन्दर सुखद वसन्त, नवल शोभाले आया। सबके मन उत्साह पड़ी ज्यो उसकी छाया ॥
चेतनकी क्या बात, रूख रूखे जड़ जो हैं। . वे भी होकर सरस, प्रफुल्लित, मनको मोह ।। शान्तिपूर्ण ऋतुराजका, अब सुराज्य संस्थित हुआ। जड़ जाड़ेके जुल्मका, 'कम्प' आज प्रशमित हुआ।
. (२) प्रथम हुआ पतझाड़, झड़पड़े पत्र पुराने । आये पल्लव नये, नम्रताको गुण जाने । ऊंचे होकर रहे नन्न, सम्मानित होंगे। इन्हें देखकर लोग, परम आनन्दित होंगे। मंगलके हर काममें, सादर लाये जायेंगे। देखो देवस्थानमें, ललित लगाये जायेंगे।