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करके जो नईनई खुलती हैं, अन्धाधुन्ध खर्च किया जाता है । यह न होना चाहिए। संचालकोंको समाजके धनको अपना अपना कमाया हुआ समझकर बहुत खयालसे खर्च करना चाहिए। और संस्थाओंकी आवश्यकताओंको जहाँ तक बने कम करना चाहिए। आयोजनों और आडम्बरोंकी ओर कम दृष्टि रखकर कामकी ओर विशेष दृष्टि रखना चाहिए। इस विषयमें इसी अङ्कमें प्रकाशित ' शिक्षासमस्या नामक लेखकी ओर हम पाठकोंकी दृष्टि आकर्षित करते हैं । उसमें इस विषयको बहुत ही स्पष्टतासे समझाया है।
८. जैन साहित्य सम्मेलन । आगामी मार्चकी ता० २-३-४ को जोधपुरमें जैनसाहित्य सम्मेलनका प्रथम अधिवेशन होगा। उस समय जोधपुर में श्वेताम्बर सम्प्रदायके प्रसिद्ध साधु श्रीविजयधर्म सूरि रहेंगे और उनसे मिलनेके लिए जर्मनीके विद्वान् डाक्टर हरमन जैकोवी पधारेंगे। इस शुभ सम्मिलनके अवसरपर जैनसाहित्य सम्मेलनका अधिवेशन एक तरहसे बहुत ही उचित हुआ है । सम्मेलनके सेक्रेटरीसे मालूम हुआ है कि जैनोंके तीनों सम्प्रदायके साहित्यसेवियोंको इस जल्से पर शामिल होनेका निमत्रण दिया गया है। यह एक और भी बहुत अच्छी बात है। यदि हम सव साहित्य जैसे विषयकी चर्चा करनेके लिए भी एकत्र न हो सके तो और किस काममें एक हो सकेंगे जिन जिन कामोंको तीनों सम्प्रदायवाले एक साथ मिलकर कर सकते हैं उनमें एक यह भी है । इस सम्मेलनमें अनेक विषयोंपर निवन्ध पढ़े जावेंगे और निम्नलिखित विपयोंकी खास तौरसे चर्चा होगी:--१ प्राकृत भाषाका कोश और व्याकरण नई पद्धतिके अनुसार तैयार करवाना। २ यूनीवर्सिटियोंमें प्राकृत भाषा दाखिल करवानेकी आवश्यकता।३जैन.