________________
७५
(५) ननुल, इसके कर्ता प्रसिद्ध पवनदी (भवनन्दिन ) थे, जिन्होंने यह प्रथ चोल वंशके कुलोत्तुंग तृतीयके एक जागीरदार अमराभरण सिपा गगाके अनुरोधसे १२ वी शताब्दिके अतमें लिखा था, क्योंकि यह भली भॉति मालूम है कि कुलोत्तुग तृतीय ईस्वी सन् ११७८ में सिंहासनारूढ़ हुए थे। इस प्रथमें केवल वर्णों और शब्दोका विवरण है और वर्तमान कालमें अधिकतासे प्रामाणिक समझा जाता है।
(६) नेमिनिदम पडित गुणवीर कृत एक व्याकरण अथ है जिसमें वर्गों और शब्दोंका विवरण है। इसमें ९६ गाथाये हैं और उनकी टिप्पणियों भी हैं।
(ज) कोष-चडामणि निघट, मंडलपुरुष कृत, १२ अध्यायोंमें है और दो अन्य कोशो 'दिवाकरनिघटु' और 'पिंगलंतई' के आधार पर है । मंडलपुरुषने अपने आपको उत्तरपुराणके कर्ता गुणभद्राचार्यका शिष्य बताया है। क्योंकि यह अच्छी तरह मालूम है कि उत्तरपुराण ईस्वी सन् ८८८ में समाप्त हुआ ओर क्योंकि मंडलपुरुषने राष्ट्रकूटवशीय राजा अकालवर्प कृष्णराजका वर्णन किया है जो ईस्वी सन् ८७५ और ९११ के मध्यमे राज्य करते थे, अत'एव यह प्रथ ईस्वी सन्की १० वी शताब्दिके प्रथम चतुर्थाशमें लिखा गया होगा।
(श) ज्योतिष-जिनेंद्रमलई, जो कि ज्योतिषका सर्वप्रिय तामिल ग्रंथ है। प्रायः इसके रचयिता जिनेन्द्र व्याकरणके कर्ता (पूज्यपाद ) थे।
८-हमको वर्तमान कालमे जैनियों कृत केवल उपर्युक्त ग्रंथ ही मालूम है । मद्रास यूनिवर्सिटी ( विश्वविद्यालय ) ने अपनी आर्ट्स परीक्षाओंके लिए इनमेंसे कई अन्योको पाठ्य पुस्तकें नियत कर दिया है। इनमेंसे अधिकाश ग्रन्थोको आधुनिक तामिल विद्वानोंने, जो कि मजैन