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कहीं इनके लिए स्कूल खोले जा रहे है, कहीं छात्रालय बनाये जा रहे है और कहीं इनकी शुद्धि की जा रही है। बडौदा, कोल्हापुर, महसूर, आदिके बड़े बड़े राजा भी इस विषयमें खूब प्रयत्न कर रहे हैं। पाठकोंको मालूम है कि कर्नाटकके समान मद्रासमें भी एक 'पचम' नामकी जाति है । जहाँ तक खोजकी गई है उससे मालूम होता है कि ये लोग पहले जैनी थे और जैनद्वेषी ब्राह्मणोने इन्हें चतुवर्णसे बहिर्भूत पंचम वर्णके नामसे प्रसिद्ध किया था। इस समय इस जातिकी बड़ी ही दुर्दशा है । यह अत्यंत ही दरिद्री है और नाई धोबी आदि नीचे जातियोसे भी अधिक नीच समझी जाती है। जिस कुए या तालाबसे सर्व साधारण पानी ले सकते हैं उससे इन्हें पानी लेनेका भी अधिकार नहीं। यह देखकर पालघाटकी वेदान्त सभाके कुछ दयाप्रवण लोगोंने इस जातिके उद्धारके लिए कमर कसी है। श्रीयुक्त शेषार्य और व्यंकटराव नामके दो सजन इस कार्यके अगुए हैं। इन्होंने रात दिन परिश्रम करके पालघाटमें पंचम लोगोंके लिये एक प्राथमिक विद्यालय स्थापित किया है जिसमें शिल्पशिक्षाका भी प्रबन्ध किया गया है। लगभग ८० लडके इसमें पढ़ने लगे हैं। उन्हें शिक्षापयोगी वस्तुयें तथा कपडे लत्ते और भोजन भी दिया जाता है। और और तरहसे भी पचम लोगोको सहायता दी जाती है। उनके लिए एफ जुदा जलाशय भी बना दिया गया है। क्या कभी जैनियोंका ध्यान भी अपने इन विछुड़े हुए दरिद्र भाइयोंकी ओर जायगा?
कविसम्मान-बंगालके सुप्रसिद्ध लेखक और कवि श्रीयुक्त रवीन्द्रनाथ ठाकुरको ससारका सबसे वडा पारितोपिक 'नोबेल प्राइज' मिला है। सवा लाख रुपयेका यह पारितोषिक है। आज तक किसी