________________
त्रिषष्ठिशलाका महापुराण और अन्य ग्रंथ; गद्यग्रंथ-गद्य-चिन्तामणि, तिलकमंजरी, इत्यादि; पद्यग्रंथ-पार्धाभ्युदय, पार्श्वनाथचरित, चंद्रप्रभचरित, धर्मशर्माभ्युदय, नेमिनिर्वाणकाव्य, जयतचरित, राधवपांडवीय ( उपनाम द्विसंधानकाव्य ), त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित, यशोधरचरित, क्षत्रचूडामणि, मुनिसुव्रतकाव्य, बालभारत, बालरामायण, नागकुमारकाव्य और अन्यप्रथ; चम्पू-जीवंधरचम्पू, यशस्तिलकचम्पू, पुरुदेवचम्पू, इत्यादि, अलंकारग्रंथ वाग्भटालड्कार, अलंकारचिंतामणि, अलकारतिलक, हेमचद्रकृत काव्यानुशासन, इत्यादि; नाटक-विक्रांतकौरवपौरवीय, अजनापवनंजय, ज्ञानसूर्योदय, इत्यादि; चिकित्साग्रंथ-अष्टांगहृदय; गणित (खगोल) व फलित ज्योतिषग्रंध-गणितसारसंग्रह, त्रिलोकसार, भद्रवाहुसंहिता, जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति, चंद्रसूर्यप्रज्ञप्ति, इत्यादि; न्यायग्रंथ-आप्तपरीक्षा, पत्र परीक्षा, समयप्राभूत(१)न्यायविनिश्चयालंकार, न्यायकुमुदचंद्रोदय, आप्तमीमासालंकृति (अष्टसहस्री), इत्यादि; हेमचंद्रकृत योगशास्त्र और अन्यग्रंथ । जैन महात्माओं द्वारा रचित सैकड़ो ग्रंथोंकी गणना करना यहाँ संभव नहीं है। इनमेंसे कुछ ग्रंथ तो प्रभावशाली और अप्रशाली मनुष्योद्वारा, जिन्होने इस कार्यको प्रेम-कृत्य समझा है, प्रकाशित हो चुके हैं और शेष अभी समयके प्रकाशकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
६-प्राचीन जैनियोंने अपने निवासस्थानों में अपने मतका प्रचार करनेके लिये बहुतसे अनुपम और उत्तम ग्रंथ लिखे। उन स्थानोंकी देशी भाषाओंके साहित्यकी वृद्धि करनेमें भी उन्होंने कुछ कम परिश्रम न किया। जो ग्रंथ उन्होंने देशी भाषाओंमें लिखे हैं वे अधिक
१ अघागहृदयके कर्ता वैद्यवर वाग्भट जैन थे, इसमें भी सन्देह है। अब तककी खोजोसे वे बौद्ध प्रतीत होते हैं।
-सम्पादक।