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( १२ ) में राजोमति द्वारा मुनि रथनेमि को' तथा आवश्यक चूणि में ब्राह्मी और -सुन्दरी द्वारा मुनि बाहुबली को प्रतिबोधित करने के उल्लेख हैं । न केवल भिक्षुणियाँ अपितु गृहस्थ उपासिकाएँ भी पुरुष को सन्मार्ग पर लाने हेतु प्रतिबोधित करती थीं। उत्तराध्ययन में रानी कमलावती राजा इषुकार को सन्मार्ग दिखाती है, इसी प्रकार उपासिका जयन्ती भरी सभा में महावीर से प्रश्नोत्तर करती है तो कोशावेश्या अपने आवास में स्थित मुनि को सन्मार्ग दिखाती है, ये तथ्य इस बात के प्रमाण हैं कि जैनधर्म में नारी की अवमानना नहीं की गई। चतुर्विध धर्मसंघ में भिक्षुणीसंघ और श्राविकासंघ को स्थान देकर निर्ग्रन्थ परम्परा ने स्त्री और पुरुष की समकक्षता को ही प्रमाणित किया है । पाश्वं और महावीर के द्वारा बिना किसी हिचकिचाहट के भिक्षुणी संघ की स्थापना की गई, जबकि बुद्ध
.१. तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाए सुभासियं ।
अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइयो ॥ -उत्तराध्ययन सूत्र २२, ४८
(तथा) दशवैकालिकचूणि, पृ० ८७-८८ मणिविजय सिरीज भावनगर । २. भगवं वंभी-सुन्दरीओ पत्थवेति""इमं व भणितो । ण किर हत्थिं विलग्गस्स केवलनाणं उप्पज्जइ ।।
-आवश्यक चूणि भाग १, पृ० २११ ३. वंतासी पुरिसो रायं, न सो होइ पसंसिओ।
माहणेणं परिचत्तं धणं आदाउमिच्छसि ।।
- उत्तराध्ययन सूत्र १४, ३८ एवं उत्तराध्ययनचूणि, पृ० २३० (ऋषभदेव
केशरीमल संस्था रतलाम, सन् १९३३) ४. भगवती १२/२। १५. जइ वि परिचित्तसंगो तहा वि परिवडइ ।
महिलासंसग्गीए कोसाभवणूसिय व्व रिसी ।।-भक्तपरिज्ञा, गा० १२८ (तथा) तुम एत सोयसि अप्पाणं णवि, तुम एरिसओ चेव होहिसि, उवसामेति लद्धबुद्धी, इच्छामि वेदावच्चंति गतो, पुणोवि आलोवेत्ता विरहति ।।
-आवश्यकचूणि २, पृ० १८७ ण दुक्कर तोडिय अंबपिंडी, ण दुक्करंणच्चितु सिक्खियाए । तं दुक्करं तं च महाणुभागं, ज सो मुणी पमयवणं निविट्ठो ।।
-वही, १, पृ० ५५५
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