________________
( ११ ) माता को दुःख न हो, इस हेतु उनके जीवित रहते संसार त्याग नहीं करने का निर्णय अपने गर्भकाल में ले लिया था। इस प्रकार नारी वासुदेव और तीर्थंकर द्वारा भो पूज्य मानी गयी है। महानिशीथ में कहा गया है कि जो स्त्री भय, लोकलज्जा, कूलांकुश एवं धर्मश्रद्धा के कारण कामग्नि के वशीभूत नहीं होती है, वह धन्य है, पुण्य है, वंदनीय है, दर्शनीय है, वह लक्षणों से युक्त है, वह सर्वकल्याणकारक है, वह सर्वोत्तम मंगल है, (अधिक क्या) वह (तो साक्षात् श्रुत देवता है, सरस्वती है, अच्युता है"परम पवित्र सिद्धि, मुक्ति, शाश्वत शिवगति है । (महानिशीथ २/ सूत्र २३ पृ० ३६)
जैनधर्म में तीर्थंकर का पद सर्वोच्च जाता माना है। और श्वेताम्बर परम्परा ने मल्ली कुमारी को तीर्थंकर माना है। इसिमण्डलत्थू (ऋषि-. मण्डल स्तवन) में ब्राह्मी, सुन्दरी, चन्दना आदि को वन्दनीय माना गया है। तीर्थंकरों की अधिष्ठायक देवियों के रूप में चक्रेश्वरी, अम्बिका, . पद्मावती, सिद्धायिका आदि देवियों को पूजनीय माना गया है और उनकी स्तुति में परवर्ती काल में अनेक स्तोत्र रचे गये हैं । यद्यपि यह स्पष्ट है कि जैनधर्म में देवी-पूजा की पद्धति लगभग गुप्त काल में हिन्दू परम्परा के प्रभाव से आई है। उत्तराध्ययन एवं दशवैकालिक की चूर्णि
१. नो खलु में कप्पइ अम्मापितीहि जीवंतेही मुण्डे भवित्ता अगारवासाओ अणगारियं पव्वइए।
-कल्पसूत्र ९१ ( एवं ) गम्भत्थो चेव अभिग्गहे गेण्हति णाहं समणे होक्खामि जाव एताणि एत्थ जीवंतित्ति।
-आवश्यकचूणि प्रथम भाग, पृ० २४२, प्र० ऋषभदेव जी केशरीमल श्वेताम्बर सं० रतलाभ १९२८ २. तए णं मल्ली अरहा"केवलनाणदंसणे समुप्पन्ने । -ज्ञाताधर्मकथा ८/१८६ ३. अज्जा वि बंभि-सुन्दरि-राइभई चन्दणा पमुक्खाओ।
कालतए वि जाओ ताओ य नमामि भावेणं ॥ -ऋषिमण्डलस्तव २०८... ४. देवीओ चक्केसरी अजिया दुरियारी कालि महाकाली ।
अच्चुय संता जाला सुतारया असोय सिरिवच्छा ।। पवर विजयं कुसा पण्णत्ती निव्वाणि अच्चुया धरणी। वइरोट्टऽच्छुत गंधारि अंब पउमावई सिद्धा ॥
--प्रवचनसारोद्धार, भाग १, पृ० ३७५-७६, देवचन्द लालभाई : जैन पुस्तकोद्धार संस्था सन् १९२२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org