Book Title: Jain Dharm aur Jivan Mulya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ श्रमण धर्म की परम्परा रूप सामयिक धर्म में व्यवस्थित किया, जिससे अहिंसा, सत्य, अचौर्य व अपरिग्रह ग्रादि के मिद्धान्त प्रतिफलित हुए । महावीर और उनकी शिष्य-परम्परा अन्तिम तीर्थङ कर महावीर का समय एक विशेष प्रकार की परिस्थिति से गुजर रहा था। इस समय के लोग ऋजु-जड़ और ऋतु-प्राज्ञ की जगह वक्र-जड़ हो चले थे । अज्ञानी तो थे ही अनाड़ी भी थे। अत: इस समय एक विशेष प्रकार के परिवर्तन की अावश्यकता थी। केवल सैद्धान्तिक विवेचन मात्र से काम चलने वाला नहीं था। अत: महावीर ने पार्श्वनाथ के चातुर्याम को ध्यान में रखते हुए पंचवतों का प्रसार किया, जिसमें अहिंसा प्रधान थो। तथा इन सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देने के लिए उन्होंने मुनि, प्रायिका, श्रावक एवं श्राविका के रूप में चतुर्विध संघ को व्यवस्थित एवं प्रयोगात्मक रूप प्रदान किया तथा महाव्रत और अणुव्रतों द्वारा उनकी साधना को मर्यादित किया । ___ इस प्रकार जैन सस्कृति भगवान् ऋषभदेव के समय की प्राची से उदित हो महावीर तक देदीप्यमान हो उठी। इस बीच उसने बिना किसी भेदभाव के समस्त मानव-जगत् को पालोकित किया। सयम द्वारा मानव को मानमिक शान्ति प्रदान की, अपरिग्रहवाद का उदघोष कर उसे लिप्सा और दमन से बचाया तथा अहिंसा जैसे सर्वव्यापी सिद्धान्त का प्रचार कर प्राणीमात्र को सुरक्षा प्रदान की। हिंसक यज्ञों का विरोध कर देश की आर्थिक परिस्थिति को सुदृढ़ किया । भगवान महावीर के बाद जैन संस्कृति के प्रवाह में अनेक मोड़ पाये । महावीर की शिष्य-परम्परा ब्राह्माण विद्वानों से प्रारम्भ हुई और बाद में भी प्राय: वैदिक क्रियाकाण्डों की व्यर्थता को समझकर अनेक ब्राह्मण विद्वानों ने श्रमण संघ के नायकत्व को सम्हाला । यह बात जितने आश्चर्य की है, उतने ही गौरव की । वैदिक क्रियाकाण्ड के पोषक ब्राह्मण जैन धर्म से प्रभावित होकर उसके प्रसार-प्रचार का कार्य सम्हालें यह कोई छोटी बात नहीं है। किन्तु गहराई से विचार कर देखे तो यही प्रतीत होता है कि एक ओर जैन धर्म के आचार्यों ने जहाँ अपनी प्रतिभा और व्यक्तित्व के द्वारा इन ब्राह्मण विद्वानों के हृदय में हिंसक क्रियाकाण्डों की निस्सारता स्थापित की, वहाँ जैन धर्म के मानव कल्याणकारी कुछ सिद्धान्तों ने भी इन ब्राह्मणों को कम आकर्षित नहीं किया। ब्राह्मण विद्वानों द्वारा जैन संघ के नायकत्व को सम्हाल लेने में श्रमण संस्कृति को दुहरा फायदा हुआ । प्रथम, इन ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा, जो वैदिक समाज के बहुभाग का प्रतिनिधित्व करते थे, अपने सम्प्रदायों और मान्यताओं को छोड़कर जैन धर्म को स्वीकार कर लेने पर अन्य वैदिक मतावलम्बी साधारण लोग अपने आप जैन धर्म के प्रति सहिष्णु हो गये। अपने आचार्य को जैन धर्म में दीक्षित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140