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अहिंसा : स्वरूप एवं प्रयोग
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इसी से मिलता-जुलता एक प्रश्न और उठा
जले जन्तः स्थले जन्तुराकाशे जन्तुरेव च ।
जन्तुमालाकुले लोके कथं भिक्ष रहिसकः ।। इस प्रश्न का भी समुचित समाधान प्रस्तुत है। संसार में जितने सूक्ष्म जीव हैं वे किसी के द्वारा पीड़ित नहीं होते और जो स्थूल हैं उनकी यथाशक्ति रक्षा की जाती है। अतः संयमी व्यक्ति के अहिंसक होने में कोई बाधा नहीं आती 123 नीवों के मरने न मरने पर कोई पाप-पुण्य नहीं होता। वह तो शुभ-अशुभ परिणामों एवं भावनामों पर आधारित है 124 सब कार्यों में भावों की निर्मलता एवं अन्तम् की पवित्रता प्रावश्यक है । यदि भावना को प्रधानता न दी जाय तो एक ही व्यक्ति द्वारा अपनी प्रियतमा और पुत्री के साथ की गई चुम्बन क्रिया में कोई अन्तर ही न रह जाय 125
प्राचार्य सोमदेव ने इसी बात को धीवर और कृषक का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है। प्राणि-घात का कार्य दोनों करते हैं। किन्तु धीवर सुबह से शाम तक नदी किनारे बैठकर यदि खाली हाथ भी घर वापिस लौटता है तो वह हिंसक है। जब कि दिनभर में अनन्त स्थावर जन्तुनों का घातकर लौटने वाला किसान हिंसक नहीं कहा जाता। 28 यहां दोनों के संकल्प और भावों के अन्तर की ही विशेषता है। प्रतः ऐसा कोई कारण नहीं है कि गृहस्थ जीवन में महिंसा को न उतारा जा सके। मानव हर क्षरण और हर अवस्था में अहिंसक रह सकता है, उसमें मनोबल और अन्तस् की निर्मलता चाहिए ।
एक और ज्वलन्त प्रश्न अहिंसा के सिद्धान्त के विषय में अब उठने लगा है। वह यह कि यदि अहिंसा के सिद्धान्त पर हम चलें तो आज विश्व में जो चारों भोर युद्ध का भयावह वातावरण व्याप्त है, उससे कैसे रक्षित हो सकेंगे ? क्योंकि युद्ध में भाव तो रोष के होते हैं और शत्रु को मारने का सकल्प भी करना पड़ता है । अतः इस संकट से बचने के लिए अहिंसक के सामने दो ही रास्ते हैं, या तो वह चुपचाप शत्रु का वार सहता जाये अथवा अहिंसा को किनारे रख शस्त्र उठा लड़ने लग जाय। क्या कोई दोनों पक्ष के बचाव का भी रास्ता है ?
प्रश्न जितना जटिल प्रौर सम-सामयिक है, समाधान उतना ही सरल और न्यायसंगत । जैन संस्कृति का इतिहास यदि हम पलटें तो पायेंगे-अनेक जन राजा ऐसे हुए हैं जिन्होंने अनेक लड़ाइयां लड़ी है। शत्र के आक्रमण से अपने को भरसक बचाया है। उसके दांत खट्ट किये हैं । चन्द्रगुप्त, सम्राट खारवेल, सेनापति चामुण्डराय प्रादि वीर योद्धा भारतीय इतिहास के उज्जवल रत्न हैं ।97 अतः अहिंसा यह कभी नहीं कहती कि दूसरे का भकारण चांटा खाकर तुम चुप हो जानो। कोशिश
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