Book Title: Jain Dharm aur Jivan Mulya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 64
________________ 54 जैन धर्म और जीवन-मूल्य धानी पूर्वक करने एवं प्रत्येक वस्तु को देख शोधकर उपयोग में लाने का विधान गृहस्थ के लिए मात्र धार्मिक ही नहीं व्यवहारिक भी है, 17 जीवों के घात के भय से जैन गृहस्थ अनेक व्यर्थ की क्रियानों से मुक्ति पा जाता है। प्रत्येक वस्तु को देखभालकर काम में लाने की आदत डालने से मनुष्य हिंसा से ही नहीं बचता, किन्तु वह बहुत-सी मुसीबतों से बच जाता है । इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्राचार्यों ने अनर्थदण्डव्रतों का विधान किया है। रात्रिभोजन त्याग का विधान भी इसी प्रसंग में है 18 इस अवलोकन से स्पष्ट है कि जैन धर्म की अहिंसा मात्र धार्मिक न हो कर व्यवहारिक भी है । अहिंसा के विषय में जिज्ञासुओं की और मे जहां अनेक व्यर्थ के प्रश्न उठाये गये वहाँ एक प्रावश्यक और जीवित प्रश्न यह भी है कि जैन धर्म के अनुसार यह संसार अनेक छोटे-छोटे जीव-जन्तुनों से खचा-खच भरा है। दैनिक जीवन से सम्बन्धित कोई भी ऐसी क्रिया नहीं है जिसमें हिंसा न होती हो। चलने-फिरने, खाने-पीने एवं बोलने प्रादि साधारण क्रियाओं में भी जीवों का घात होता है । इस स्थिति में अहिंसा की साधना कसे पूरी होगी ? हम निष्क्रिय होकर तो बैठ नहीं सकते हैं । गृहस्थ जीवन अनेक परिग्रहों से युक्त है, जिसमें दिनरात बहुत से आरम्भ करने पड़ते हैं । अतः अहिंसा की रक्षा वहाँ कसे सम्भव है ? अहिंसा सम्बन्धी समस्याएं और समाधान : जैनाचार्य संसार से विरत अवश्य थे, किन्तु उन्होंने सामान्य जीवन से सम्ब. धित इन प्रश्नों का समाधान भी प्रस्तुत किया है। संसार में सभी प्राणी अपनीअपनी आयु लेकर पाते हैं । नित्य मरते पोर उत्पन्न होते हैं। प्रतः जीवों के मरने में सावधान व्यक्ति यदि कारण होता है तो वह हिंसक नहीं कहा जा सकता । पोर न उसके अणुवती अहिंसक होने में कोई दोष पाता है। क्योंकि उसके अन्तस् की भावना पवित्र एवं दया से प्रार्द्र है। यहाँ हमें हिंसा-अहिंसा को भावों पर ही प्राधारित मानना पड़ेगा। यदि ऐसा न मानें तो एक भी व्यक्ति का मोक्ष और बन्ध न हो । 20 तथा शुद्ध भाव वाले व्यक्ति को भी यदि केवल द्रव्य हिंसा के कारण हिंसक मान लिया जाय तो एक व्यक्ति भी इस संसार में अहिंसक नहीं कहला पायेगा 121 अतः शुभ परिणामों के साथ संसार में सक्रिय रहते हुए अहिंसा की साधना की जा सकती है ।। ___ यह बात सही है-गृहस्थ-जीवन परिग्रहों का भण्डार है। किन्तु उसकी भी सीमा निर्धारित की जा सकती है । तृष्णा को कम करके यदि प्रावश्यक पौर पमिवायं वस्तुओं का संग्रह किया जाय तथा उनके उपयोग के समय सन्तोष से काम लिया जाय तो हिंसा की अधिकता होने का कोई कारण नहीं दिखता। अल्प प्रारम्भ और अल्प परिग्रह से सन्तुष्ट व्यक्ति अहिंसक है 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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