Book Title: Jain Dharm aur Jivan Mulya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur
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जैनधर्म और जीवन मूल्य
15. महान्य दुःखं हन्तव्यं दुःखत्वादात्मदुःखवत् । अनुग्राह या मयदान्येपि सत्वत्वादात्मसत्त्ववत् ।।
-बोधिचर्यावतार, 8-94 16. 'मनुस्सत्त खो भिक्खवे देवानं सुगति गमन संखातं ।'
-इतिवृत्तक (चवमानसुत्त) 17. अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहारण य सुहागा य । अप्पा मित्तम मित्त च दुपट्ठिमो सुपट्टियो ।।।
-उत्तराध्ययन सूत्र, 20-37 18. उपाध्याय, भरतसिंह : बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, पृ. 618 19. जैन प्राचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 143, 347 20. (अ) जैन, डॉ. मागचन्द्र : जैनिज्म इन बुद्धिस्ट लिटरेचर, नागपुर, 1972 (ब) जैन, शीतल प्रसाद : ए कम्परेटिव स्टडी आफ जैनिज्म एण्ड बुद्धिज्म, दिल्ली, 1982
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