Book Title: Jain Dharm aur Jivan Mulya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 110
________________ 100 जैनधर्म और जीवन मूल्य 15. महान्य दुःखं हन्तव्यं दुःखत्वादात्मदुःखवत् । अनुग्राह या मयदान्येपि सत्वत्वादात्मसत्त्ववत् ।। -बोधिचर्यावतार, 8-94 16. 'मनुस्सत्त खो भिक्खवे देवानं सुगति गमन संखातं ।' -इतिवृत्तक (चवमानसुत्त) 17. अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहारण य सुहागा य । अप्पा मित्तम मित्त च दुपट्ठिमो सुपट्टियो ।।। -उत्तराध्ययन सूत्र, 20-37 18. उपाध्याय, भरतसिंह : बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, पृ. 618 19. जैन प्राचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 143, 347 20. (अ) जैन, डॉ. मागचन्द्र : जैनिज्म इन बुद्धिस्ट लिटरेचर, नागपुर, 1972 (ब) जैन, शीतल प्रसाद : ए कम्परेटिव स्टडी आफ जैनिज्म एण्ड बुद्धिज्म, दिल्ली, 1982 000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140