Book Title: Jain Dharm aur Jivan Mulya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 124
________________ 114 जैन धर्म और जीवन मूल्य नागदा, करेड़ा, केलवाड़ा, देलवाड़ा आदि स्थानों पर जैनधर्म को अच्छा संवर्द्धन प्रदान किया था। सहरणपाल एवं सारंग नामक श्रेष्ठि भी कलामर्मज्ञ एवं धार्मिक दृष्टि से उदार अधिकारी थे 188 सोम-सौभाग्य काव्य से ज्ञात होता है कि ई डर का वीसल श्रेष्ठि का परिवार धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध था 187 श्रेष्ठि गुणराज का चित्तौड़ के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान है। राणकपुर के धरणाशाह परिवार का योगदान विश्वविख्यात हो गया है। शाह वेलाक, साह हरयाल, सेठ रतनाशाह, शाह जीवराज पापड़ीवाल आदि इस युग के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता थे ।88 इस युग के निर्माण में जैन परिवारों की धार्मिक महिलाओं का भी कम योगदान नहीं है । तत्कालीन अभिलेखों से बड़ी रोचक जानकारी मिलती है। बिजौलिया लेखों में जैन सालिकों के नाम भी अंकित हैं । अभिलेखों से ज्ञात होता है कि पत्नी का नाम पति के उपनाम से प्रारम्भ होता था । यथा-समकत कर्मा-कदिवी, तेलहर लन == लुना देवी, सुराणा लखन =लख नसिरी, प्रागवट लेखा-लेखाश्री इत्यादि । 89 महाराणा कुम्भाकालीन मेवाड़ में जैनधर्म की प्रमुख दोनों शाखामोंश्वेताम्बर एवं दिगम्बर का पर्याप्त विकास हुना है। तपागच्छ के जैनाचार्यों के लिए यह साधना भूमि रही है। खरतरगच्छ का जन्म मेवाड़ में हुमा, भले ही उसका विस्तार गुजरात में हुमा हो । चैत्यवासी परम्परा का प्रमुख केन्द्र भी पाबू एवं सिरोही राज्य रहा है। भट्टारक सम्प्रदाय के दिगम्बर प्राचार्यों के लिए तो मेवाड़ एवं उसके आस-पास के प्रदेश बहुत अनुकूल रहे हैं धार्मिक प्रचार के लिए। इनके प्रयत्नों से बहुमूल्य साहित्य यहाँ सुरक्षित रह सका है। कहा जाता है कि महाजनों की 84 जातियां इसी युग में प्रसिद्धि में आयी थों । पृथ्वीचन्द्र चरित में तो इनके नाम भी मिलते हैं 190 बांठिया, लूनिया, सुराना, सांखला, दूगड़, चौपड़ा, कटारिया, बोथरा आदि गोत्र महाराणा कुम्भा के समय में ही राजस्थान में प्रचलित हुए हैं, जिनका सम्बन्ध जैनधर्म के साथ जुड़ा है । इस तरह महाराणा कुम्भा कालीन मेवाड़ में जैनधर्म के इतिहास एवं विकास के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। इसका विधिवत् एवं गहरायो से मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है । "15 वीं शताब्दी के मेवाड़ में जैनधर्म" नाम से एक अच्छा ग्रन्थ या शोध-प्रबन्ध तैयार किया जा सकता है। जो राजस्थान के इतिहास एवं संस्कृति के लिए उपयोगी दस्तावेज होगा । मेवाड़ के जैन शिलालेखों का संग्रह, जैन ग्रन्थ-प्रशस्ति-संग्रह एव जैन पुरातत्व, ये तीन ग्रन्थ भी हिन्दी अंग्रेजी के साथ तैयार किये जाने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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