Book Title: Jain Dharm aur Jivan Mulya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 122
________________ 112 जैन धर्म और जीवन-मूल्य पीतलशाह जैन मंदिर - - इसका निर्माण वि. सं. 1512 में हुआ था | निर्माता पीतल्या जैन जाति के श्रावक के कारण इसका नाम पीतलशाह का मन्दिर हैं । कुम्भलगढ़ में इन मन्दिरों के लब्ध हुई हैं, जो इसे प्रसिद्ध जैन कला 4. राणकपुर का चौमुखा जैन मन्दिर अतिरिक्त अन्य खण्डित जैन मूर्तियां भी उपकेन्द्र सिद्ध करती हैं । अरावली पर्वतों से घिरा हुआ सादड़ी ( मारवाड़) का यह जैन मन्दिर राणकपुर के चौमुखा मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है । इसे पोरवाल जाति के घररणाशाह नामक श्रेष्ठि ने महाराणा कुम्भा के काल में बनवाया था । वि. सं. 1496 से सं. 1516 के बीच इस मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ । किन्तु इसकी प्रतिष्ठा सं 1496 में हो चुकी थी । यह मन्दिर अपने शिल्प एवं भव्यता के लिए विश्व विख्यात है । इस मन्दिर का निर्माण देपाक नामक शिल्पकार ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर किया था 173 इस प्रमुख मन्दिर के साथ राणकपुर में पार्श्वनाथ एवं नेमिनाथ के दो मंदिर भोर हैं, जो इसके समकालीन ही हैं । महाराणा कुम्भा कालीन मेवाड़ में इन जैन कला केन्द्रों के अतिरिक्त, नागदा, बसन्तगढ़, केलवा, सरदारगढ़, डूंगरपुर, माण्डलगढ़, गोड़वाल आदि अनेक स्थानों पर भी जैन मन्दिर प्राप्त होते हैं । 74 नागदा में गुणराज ने 1428 ई. में महावीर मन्दिर बनवाया था तथा 1429 ई. में पोरवाल जाति के श्रेष्ठि ने पार्श्वनाथ मन्दिर बनवाया था 175 नागदा में 1437 ई. में सारंग ने अद्भुत जी मन्दिर में शान्तिनाथ की मूर्ति बनवाई थी । बसन्तगढ़ में घांसी के पुत्र भादाक ने 1453 ई. में वसन्तपुर चैत्य बनवाया था । इसी तरह 15 वीं शताब्दी में नाणा ग्राम, नाडलाई प्रादि स्थानों पर मन्दिर बनवाये गये थे । ही इस युग में मन्दिरों में प्रसिद्ध जैनाचार्यों की मूर्तियां भी स्थापित की जाने लगी थीं । मेवाड़ के दिलवाड़ा के मन्दिर में 15 वीं शताब्दी में बनी हुई जिनरत्नसूरि, जिनवद्ध नसूरि, द्रोणाचार्य, जिनराजसूरि की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं 176 जैन चित्रकला : चित्रकला प्रति सूक्ष्म कला है । अतः इसके नमूने सुरक्षित रह पाना कठिन हैं। 15 वीं शताब्दी के जैन मन्दिरों में चित्रकला के नमूने दुर्लभ हैं । किन्तु इस समय के साहित्य में कई महत्वपूर्ण चित्र प्राप्त होते हैं । जोधपुर के केसरियानाथ के मन्दिर में खरतरगच्छ भण्डार में 15 वीं शताब्दी की लिखित व चित्रित एक पाण्डुलिपि उपलब्ध है । इसका परिचय प्रगरचंद नाहटा ने दिया है 177 15 वीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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