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जन धर्म और जीवन-मूल्य
आलोच्य युग में जैनधर्म के स्वरूप को जानने के लिए प्रमुख रूप से तत्कालीन अभिलेख, जैन ग्रन्थ, जैन आचार्य, जैन मन्दिर एवं मूर्तियां, प्रमुख श्रावक-श्राविकाएं एवं जैन तीर्थों का परिचय प्राप्त करना होगा । यद्यपि फुटकर रूप से इस सम्बन्ध में विद्वानों ने प्रकाश डाला है किन्तु समग्र रूप में कुम्भाकालीन जैनधर्मं को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
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अभिलेख :
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राजस्थान के मध्ययुगीन अभिलेखों में जैन अभिलेखों की संख्या एक हजार से ऊपर है । प्रमुख रूप से श्री रामवल्लभ सोमानी एवं डॉ. श्यामप्रसाद व्यास 7 ने जैन अभिलेखों पर भी प्रकाश डाला है । इन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि राजस्थान के शासक जैनधर्म को निरन्तर संरक्षण देते रहे हैं । विद्वानों का मत है कि जैनधर्म के सम्पर्क से ब्राह्मणों एवं राजपूतों में शाकाहार की प्रवृत्ति निरन्तर विकसित हुई है । धार्मिक सहिष्णुता का विकास हुआ है। महाराणा कुम्भा के वंशजों ने भी इस प्रवृत्ति को आगे बढ़ाया है। महाराणा मोकल के समय में जैनधर्म को पूर्ण प्रश्रय प्राप्त था । उनके खजांची गुणराज ने सं. 1485 में नागदा में महावीर मन्दिर बनवाया था । नागदा में ही एक पार्श्वनाथ मन्दिर है, जिसे पोरवाल जाति के श्रेष्ठि ने बनवाया था । इस मन्दिर के ऊपर छरने पर एक अभिलेख लगा है, जो वि० सं० 1486 का है । इस अभिलेख में कई जैन आचार्यों के नामों का उल्लेख
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महाराणा कुम्भा कला एवं पुरातत्व के महान् संरक्षक के रूप में प्रसिद्ध हैं । उनके राज्यकाल में अब तक ज्ञात लगभग 55 अभिलेख प्राप्त हुए हैं ! उनमें से 12 अभिलेख जनधर्म से सम्बन्धित हैं । इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
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देवकुल पाठक अभिलेख 11 - यह ग्रभिलेख सं. 1491 कार्तिक सुदि 2 सोमवार को देलवाड़ा ( मेवाड़ ) में लिखा गया था। इससे ज्ञात होता है कि महाराणा कुम्भा के विजय राज्य में धर्म-चिन्तामरिण मन्दिर की पूजा के निमित्त चौदह टंक (रजत मुद्रा ) राज्य की ओर से प्रदान किए जाते थे । श्रावश्यक - प्रशस्ति 12---- जिन सागरसूरि के उपदेश से शाह रामदेव श्रौर उनकी पत्नी मेलादे ने श्रावश्यक वृद्ध वृत्ति द्वितीय खण्ड का लेखन कराया था । इसकी लेखन तिथि इस प्रशस्ति में सं. 1492 आषाढ़ सुदी 5 गुरुवार दी है । यह देलवाड़ा (मेवाड़) में लिखी गयी थी ।
नागदा का मूर्ति लेख 13- कुम्भा के राज्यकाल में शाह सारंग की प्रेरणा से मदन पुत्र सूत्रधार धरणा के द्वारा नागदा में शांतिनाथ की विशाल मूर्ति निर्मित की गयी थी । इस मूर्ति के आसन पर सं. 1494 माघसुद 11 गुरुवार लिखा है ।
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