Book Title: Jain Dharm aur Jivan Mulya
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 78
________________ 68 जैन धर्म और जीवन-मूल्य परिणाम ठीक विपरीत दृष्टिगोचर होते है। क्योंकि वह समय काटने के लिए पढ़ता है, जानने के लिए नहीं, जो स्वाध्याय की पहली शर्त है । स्वाध्याय का अर्थ है....माज से कल श्रेष्ठ होना। कल की श्रेष्ठता बिना हष्टि खोले नहीं पा सकती । सत्य को पकड़ना ही होगा। और जब अध्ययन करने वाला सत्यदर्शी होता है तो उसके दुराग्रह विदा होने लगते हैं । वह वस्तु के विभिन्न पक्षों को जान जाता है। उसका चिन्तन सापेक्ष हो जाता है। यही कारण है कि जिसने जीवन भर पढ़ा हो, स्वाध्याय किया हो वह विचारों का कुबेर एवं शब्दो का मितव्ययी हो जाता है। बहुत कम बोलता है, किन्तु सार्थक । ऐसे व्यक्ति कों फिर पुस्तकों के अध्ययन की पावश्यकता नहीं रहती। वह जहाँ देखता है, वही से कुछ न कुछ पढ़ लेता है। वस्तुतः स्वाध्याय का सही अर्थ यही है कि जहाँ अध्ययन में, सत्य की अनुभूति में आत्मा के अतिरिक्त और कोई सहायक न हो । यही स्वाध्याय आत्मा को परमात्मा बनाता है। साधक अध्यवसाय में बहुत कुछ गुणों की वृद्धि करता है_ 'प्रकास्तध्यवसायस्य स्वाध्यायोवृद्धिकारणम्' आज का सबसे बड़ा फैशन है, नवीनता को ग्रहण करना । चाहे वह विज्ञान के क्षेत्र में हो अथवा सभ्यता और कला के क्षेत्र में । हर जगह नये प्रयोग देखने को मिलेगें। यह नयापन आता कहाँ से है ? इसके लिए दो बातें आवश्यक हैं-नयी उमंग एवं अत्यधिक अध्ययन । एक से काम नहीं चलेगा। इसीलिए पुरानी पीढ़ी प्रध्ययन करके और युवा पीढ़ी नयी उमंगें भरकर भी अधूरी हैं। जीवन में जागृत नहीं हैं । इसलिए जो कुछ इनसे हो रहा है, थोड़े दिन बाद गलत साबित हो जाता है। यहाँ स्वाध्याय मदद कर सकता है । जानो, पूरी शक्ति और लगन से जानो। गलती होने की संभावना निरन्तर कम होती जायेगी। संसार तक जानोगे तो वैज्ञा. निक हो जाओगे और ज्ञाता को भी जानोगे तो परमात्मा के पथ पर होगे। अतः स्वाध्याय से हानि कहीं नहीं है । वह निःश्रेयस मार्ग है सज्झायएगन्तनिसेवणा य । सुत्तस्थसंचिन्तणाया घिई य ।। उत्त. 32/इ. स्वाध्याय का एक सूत्र यह भी है कि जीवन में कहीं आवरण को मत पकड़ो। अच्छा-बुरा जो भी किया है, उसका लेखा-जोखा दिन में एक बार अवश्य करो। इससे बहुत कुछ मैल छन जायेगा । और यदि कहीं सद्ग्रन्थों का अध्ययन तथा सत्संग करने की मादत डाल ली तो स्वमेव जीवन से बनावटी पन समाप्त होने लगेगा । स्वाध्याय की यह निष्पत्ति है कि अपने जीवन को खुली किताब के समान रखो । उस हवादार और रोशनदान युक्त मकान की तरह, जिसमें प्रकाश आ सके और धूल के कण बाहर जा सकें । स्वाध्याय यही सिखाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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