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महावीर के चिन्तन-करण
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अपने आप जुड़ गई। क्योंकि सामान्य जन की उपेक्षा करना सरल नहीं है। निर्धन व्यक्ति उतना ही स्वतन्त्र सत्ता वाला है जितना धनिक । साधु भी इसका प्रतिक्रमण नहीं कर सकता था
नीयं कुलमइक्कम्म ऊसढं नाभिधारए । - दश ० ५।२।२५
भगवान् महावीर के चिन्तन ने भारतीय मनीषा को बहुत प्रभावित किया है। भारत की प्राचीन भाषायों से लेकर आधुनिक भाषाओं तक में महावीर की गोरव. गाथा गुम्फित है । उनके चिन्तन का विकास प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश एवं आधुनिक भाषाओं के साहित्य में विभिन्न कथानकों, दृष्टान्तों एवं रूपकों द्वारा प्रस्तुत किया गया है । सम्भवत : महावीर द्वारा प्रणीत धर्म की व्याख्या में सर्वाधिक अभिप्रायों (motifs) और प्रतीकों का प्रयोग हुआ है । संस्कृत, प्राकृत में प्रतीक ग्रन्थ ही स्वतन्त्र रूप से जैनाचार्यों द्वारा लिखे गये है। ज्ञान के प्रति जैन समाज में इतनी उत्कंठा महावीर के उपदेशों द्वारा ही हुई है, जिसमें उन्होंने कहा है कि ज्ञान प्राप्त करके ही व्यक्ति विनम्र होता है और ज्ञान के प्रभाव में सयम नहीं होता (उत्त• २८।३०)। ज्ञान ही सच्चा प्रकाश है -
णारज्जोवो जोवो। -भगवती आराधना गा० ७६८
ज्ञान की इस महिमा के कारण ही भगवान् महावीर की परम्परा में विज्ञान के क्षेत्र में भी जैनाचार्य निष्णात होते रहे हैं । शिक्षा के प्रसंग माने पर जैनागमों में विभिन्न कलाओं के वर्णन उपलब्ध होते हैं । जो विविध शिल्प एवं विद्यायें दैनिक जीवन में प्रयुक्त होती थीं, उनके सन्दर्भ भी जैनागम में प्राप्त हैं । आयुर्वेद विज्ञान युद्धविज्ञान रसायन-शास्त्र, यंत्रशिल्प आदि के तो कुछ ऐसे सन्दर्भ भी जैनाचार्यों ने प्राकृत मे दिये हैं, जो अन्य भाषाओं के साहित्य में उपलब्ध नहीं हैं । उत्तराध्ययनटीका (४, पृ. ८३) एवं दशवैकालिक चणि (१, पृ. ४४) आदि के सन्दर्भो से ज्ञात होता है कि धातु के पानी से तांबे आदि को सिक्त करके सुवर्ण बनाया जाता था। कुवलयमालाकहा में इसे धातुवाद कहा गया है, जिसका विस्तृत वर्णन इस ग्रंथ में है।
कला एवं विज्ञान के अतिरिक्त जैनागमों में तत्कालीन सभ्यता के विविध उपकरणों का विवेचन हुअा है । प्राचीन भारत के वस्त्र, प्राभूषण एवं मनोरंजन के विविध साधनों की पर्याप्त जानकारी जैन साहित्य के प्रध्ययन से होती है । इस प्रकार न केवल भगवान महावीर की पूर्व-परम्परा, उनका जीवन-दर्शन, सांस्कृतिकबिरासत अपितु उनकी परम्रा में विकसित होने वाला साहित्य और शिल्प भी भारतीय संस्कृति के गौरव की गाथा कहता है । भारतीय चिन्तन और मनीषियों की आत्मानुभूतियों से हमारा साक्षात्कार कराता है ।
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