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जैन धर्म और जीवन-मूल्य
बाहर नहीं भागे । यही कारण है कि अनेक मुनियों व आचार्यों आदि महापुरुषों के जन्म, तपश्चरण निर्वाण आदि के निमित्त से उन्होंने देश की पद पद भूमि को अपनी श्रद्धा व भक्ति का विषय बना डाला है । जैन संस्कृति की राष्ट्रीयता लौकिकभाव से प्रोत-प्रोत है ।
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जैन धर्म की लोक भावना भूमिगत ही नहीं रही उन्होंने लोक भाषाओं का जो उद्धार किया है, वह किसी से छिपा नहीं है । वैदिक साहित्य ने केवल संस्कृत भाषा को आगे बढाया । बौद्ध साहित्य ने पालि से ऐसा मोह किया कि भारत में तो ठीक, लंका, स्याम, बर्मा आदि में भी उसने वहाँ की अन्य लौकिक भाषानों को ग्रहण नहीं किया । किन्तु जैन साहित्य ने अपनी उदारता भाषाओं में भी प्रकट की है ।
भगवान् महावीर ने लोक उपकार की भावना से उस समय की वाणी अर्धमागधी का उपयोग किया । किन्तु बाद के जैनचार्यों ने जब-जब धर्म प्रचारार्थ जहाँ-जहाँ गये तब उन्होंने उन्हीं प्रदेशों में प्रचलित लोकभाषा प्रों को अपनी साहित्य रचना का माध्यम बनाया। शौरसेनी, महाराष्ट्री, अपभ्रंश प्रादि लोकभाषात्रों का पूरा-पूरा प्रतिनिधित्व जैन साहित्य में पाया जाता है। हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी आदि आधुनिक भाषात्रों का प्राचीनतम साहित्य जैनियों का ही मिलता है । दक्षिण की तमिल व कन्नड़ भाषाओं को साहित्य में लाने का श्रेय जैनियों को है । इस प्रकार सम्पूर्ण जैन संस्कृति लोक चेतना से ओत-प्रोत है ।
साहित्य एवं कला को विशिष्टता
जैन साहित्य एवं कला की भी अपनी कुछ निजी विशेषताएं हैं । साहित्य की अनेक विधाओं में जैन साहित्य उपलब्ध है । विभिन्न विषयों का उसमें वर्णन है । युगानुसार अनेक भाषाओं में वह लिखा गया है । प्रमुख रूप से जैन साहित्य की दो विशेषताएं हमारे सामने अधिक उभरती हैं । प्रथम, उसके विशाल एवं विविध कथा - साहित्य का प्रस्तुतिकरण और दूसरे, उसकी सांस्कृतिक समृद्धता ।
जैन कथा-साहित्य आगमों से लेकर बराबर 15 वीं शताब्दी तक उपलब्ध होता है । अन्य भारतीय कथा - साहित्य से यह किसी मायने में कम नहीं है । जैन कथा-साहित्य विशिष्ट इस बात में है कि कथाएं चाहे प्रारम्भ जिस किसी रूप में हों, वर्ण विषय की भले भिन्नता हो, किन्तु उसकी परिणति प्रायः एक-सी होती है। जैन कथाकारों का मुख्य उद्देश्य जैन धर्म व संस्कृति को जन-जन के हृदय में उतारा था, मानव को संसार की विभिन्नता के दर्शन कराकर उन्नति का मार्ग प्रदर्शित करना था । अतः उन्होंने लोक में प्रचलित अनेक कथाओं को सहर्ष ग्रहण कर उन्हें जैन सिद्धान्तों में रंगते हुए जन सामान्य के समक्ष उपस्थित कर दिया । पाप-पुण्य, जन्ममरण, स्वर्ग-नरक आदि का यथार्थ ज्ञान पूर्वजन्मों की कथानों द्वारा सरलता से
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