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२ हे प्रभो ! तेरापंथ
नवजात शिशु को दीप्तिमान पाकर जब उसके चेहरे पर भीषण ओज व तेज देखा तो उसका नाम 'भीखन' दिया। शिशुवय में इसी नाम का लघु रूप 'भिक्खु' हो गया और सभी इस बालक को 'भिक्खु' कहकर पुकारने लगे। उस समय किसे पता था कि इसी नाम से भगवान् महावीर ने अपने अनुगत शिष्यों को आगम वाणी में स्थान-स्थान पर 'भिक्खु' कहकर संबोधित किया है और यही बालक आगे चलकर भगवान् महावीर के बताये मार्ग का अनुसरण कर सच्चा भिक्खु होगा व आचार्य भिक्खु के नाम जैन धर्म एवं परम्परा का सही स्वरूप उजागर करने हेतु धर्म - क्रान्ति करेगा व लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र बन जाएगा ? जन्मभूमि, वंश - परिचय, परिवार आदि
भिक्षु की जन्मभूमि कंटालिया ग्राम तत्कालीन मारवाड़ राज्य के कांठा प्रदेश के एक छोर पर बसा हुआ था। वहां ठाकुर बख्तसिंह राज्य करते थे । गांव में घनी आबादी थी व ओसवालों के बहुत घर थे । ठाकुर बख्तसिंह मारवाड़ राज्य के उमराव थे । मारवाड़ राज्य के राजा महाराजा अभयसिंह थे, जो संवत् १७८१ श्रावण बदि में राज्यारूढ़ हुए थे ।
भिक्षु बड़साजन ओसवाल वंश में जन्मे, उनका गौत्र संकलेचा था, उनके पिता का नाम शाह बल्लूजी व माता का नाम दीपांबाई था । उनके पितामह का नाम पांचोजी था, जिनके बड़े भाई नाकरजी व छोटे भाई गेलोजी थे । उनके ताऊ का नाम सुखोजी व चाचा का नाम पेमोजी था । उनके बड़े भाई का नाम होलोजी 'था जो उनकी विमाता से थे ।
भिक्षु बचपन से ही असाधारण मेधावी, कुशाग्र बुद्धि व प्रत्युत्पन्नमति के धनी थे । वे बोलने में बहुत ही चतुर थे। उनकी बात न्यायसंगत एवं युक्तियुक्त होती थी। लोगों की घरेलू समस्याओं का भिक्षु समाधान करते । उनकी शिक्षा ग्राम-गुरु के यहाँ हुई और थोड़े ही समय में उन्होंने ज्ञानार्जन कर, महाजनी विद्या में निपुणता प्राप्त कर ली ।
धर्म-सम्प्रदाय
भिक्षु के पिता शाह बल्लूजी के दादा कपूरजी ने ढूंढिया सम्प्रदाय में दीक्षा ली थी । ४३ दिन की तपस्या में १३ दिन का संथारा कर स्वर्गवासी हुए थे 1 बल्लू जी के भाई पेमोजी पोतियाबंध सम्प्रदाय में दीक्षित हुए । भिक्षु के मातापिता जैन गच्छ - वासी सम्प्रदाय के अनुयायी थे व कुलगुरु होने के नाते भिक्षु का भी वहीं आना-जाना होता रहा। बाद में वे पोतियाबंध सम्प्रदाय के पास आनेजाने लगे, पर वहाँ उन्हें संतोष नहीं हुआ । फिर उनको छोड़कर वे ढूंढिया सम्प्रदाय के आचार्य रुघनाथजी महाराज के शिष्य बने । ऐसा लगता था कि वे
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