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तेरापंथ का उदयकाल
तेरापंथ का जन्म और उसके आदि-प्रणेता आचार्यश्री भिक्षु
गर्भ-प्रवेश
संवत् १७८२ आसोज शुक्ला ३ को रात्रि का अन्तिम प्रहर । वर्तमान राजस्थान राज्य के पाली जिले (प्राचीन मारवाड़ राज्य के कांठा क्षेत्र) के एक छोटे-से गांव कंटालिया में शाह बल्लूजी व उनकी धर्मपत्नी दीपांबाई फूस के छप्पर के नीचे आसपास सोये हुए थे । रात्रि की नीरव बेला में दीपांबाई को अर्द्धजागृत अवस्था में स्वप्न आया कि एक विशाल, तरुण, तेजस्वी सिंह उनके शरीर में प्रवेश पा रहा है । वे तत्काल उठीं, उन्होंने अपने पति को जगाया और स्वप्न की बात बताई । शाह बल्लू जी अनुभवसिद्ध व्यक्ति थे । उन्होंने स्वप्न की बात पर गौर कर कहा, "स्वप्न बहुत शुभ है, तुम्हारे पुत्र होगा, जो वनराज सिंह की तरह साहसी एवं निर्भीक राजा बनेगा, पर क्योंकि सिंह स्वयं ही अपना मार्ग खोजकर आगे बढ़ता है, अत: अपने पुत्र को समझ आने के बाद, यौवन में प्रवेश करने के पूर्व, मुझे संभवतः शरीर छोड़ना पड़ेगा । उसके शौर्य और ऐश्वर्य की गाथाएं मैं न सुन सकूंगा । न देख सकूंगा । सिंह को अपनी माता से प्रतिरोध की आशंका नहीं रहती, अतः पुत्र की तेजस्विता एवं प्रखरता से तुम्हारा साक्षात होना निश्चित है ।" दीपांबाई अपने पति की भविष्यवाणी सुनकर तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति की आशा में जहां प्रसन्न हुईं, वहीं अपने पति के असामयिक कालकवलित होने की आशंका मात्र से सिहर उठी । वह अपने स्वप्न की बात किसी पारिवारिक जन या सगे-संबंधी को कहने का फिर साहस नहीं जुटा सकीं ।'
जन्म और नामकरण
स्वप्न के ठीक १०० दिन बाद संवत् १७८३ के आषाढ़ शुक्ला १३ के शुभ दिन दीपांबाई के उदर से पुत्र का जन्म हुआ । माता-पिता ने स्वप्न के अनुसार:
१. स्वीकृत तथ्यों के विश्लेषण के निष्कर्षो के आधार पर ।
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