Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ लूम हुआ है । इसलिये हमने ऊपर कहा है कि, प्रबोधचन्द्रोदयके उत्तरमें इसकी रचना हुई है। परन्तु यदि कनकनन्दिके प्राकृत ज्ञानसूर्योदयका यह अनुवाद अथवा अनुकरण हो और वह प्रा. । चीन हो, तो ऐसा भी हो सकता है कि, ज्ञानसूर्योदयको देखकर प्रबोधचन्द्रोदयकी रचना की गई हो । चाहे जो हो, परन्तु इतना तो अवश्य है कि, ये दोनो ग्रन्थ एक दूसरेको देखकर बनाये गये है । क्योकि इन दोनोंकी रचना प्रायः एक ही ढंगकी, और एक ही भित्तिपर ही हुई है। दोनों ग्रन्थोंका परिशीलन करनेसे यह बात अच्छी तरहसे समझमें आ जाती है । कहीं २ तो थोड़ेसे गब्दोंके हेरफेरसे वीसों श्लोक और गद्य एक ही आशयके मिलते हैं। दोनोंके पात्र भी प्रायः एकही नामके धारण करनेवाले है । ज्ञानसूर्योदयकी अष्टशती प्रबोधचन्द्रोदयकी उपनिषत् (शास्त्र विशेष) है, काम, क्रोध, लोभ, दंभ, अहंकार, मन, विवेक आदि एकसे है। सूर्योदयकी दया चन्द्रोदयकी श्रद्धा है । वहां दया खोई गई है, 'यहां श्रद्धा खोई गई है । वहां अष्टशतीका पति प्रबोध है, यहां उपनिपत्का पति पुरुष है। सारांश यह कि, दोनों एक ही मार्गपर एक दूसरेको पढ़कर बनाये गये है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 115