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द्वितीय अंक।
४३ क्षमा-विक्रम राजाकी मृत्युके एक सौ छत्तीस वर्ष पीछे सौराष्ट्र देशके वल्लभीपुर नगरमें श्वेताम्बर संघकी उत्पत्ति हुई है। श्रीभद्रबाहु गणिके शान्त्याचार्य नामके शिष्य थे । और उनके जिनचन्द्र नामका एक दुष्ट शिप्य था । उसीने इस शिथिलाचारकी प्रवृत्ति की और स्त्रीको उसी भवमें मोक्ष, केवलज्ञानीको कन्नलाहार तथा रोगवेदना, वस्त्रधारी यतिको निर्वाण, महावीर भगवानका गर्भहरण, अन्य लिंगसे (जैनियोंके सिवाय अन्य साधुओंके वेपसे) मुक्ति, और चाहे जिसके यहांका प्रासुक भोजन ग्रहण
करनमें दोषाभाव इत्यादि और भी आगमदुष्ट और शास्त्रसे विरुद्ध : उपदेशके देनेवाले मिथ्या शास्त्रोंकी रचना की और उसके फलसे आपको पहले नरक पटका । वेटी! दिगम्बर मतमें कलह करके
और एक ही सिद्धान्तके विरुद्ध अर्थ प्रतिपादन करके भिन्न भिन्न मार्गोंके ग्रहण करनेवाले इन श्वेताम्बरियोंको क्या अब भी तू नहीं देखती हैं? १ एकसये छत्तीसे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स ।
सोरटे घलहीये उप्पण्णो सेवड़ो संघो ॥१॥ सिरिभद्दबाहुगणिणो सिस्सो णामेण सांतिआइरिओ। तस्सय सिस्सो दुट्टो जिणचंदो मंदचारित्तो ॥२॥
तेणकयं मयमेयं इत्थीणं अत्थि तव्भवे मोक्खो । इत्यादि. । २ इस ग्रन्यक मापाटीकाकार प० पारसदासजीने यहांपर अपनी ओरसे वद्रुत कुछ लिसा है और उसमें केसर लगानेवालोको, पुष्पमाला चढानेवालोको, मंदिरमें क्षेत्रपाल पद्मावती स्थापित करनेवालोंको तथा उनकी पूजा करनेवालोंको भी जैनाभास मार्गच्युत भ्रष्ट वतला दिया है। भाषा वाचनेवालोको ऐसे ग्रन्थ यांचनेसे श्रद्धान हो जाता है कि, मूल ग्रन्थों में बड़े २ आचाोंने भी ऐसा लिखा है। परन्तु यह कोई नहीं जानता है कि, अनेक भापा करनेवाले महाशयोने इस तरह अपनी स्वतत्र लेखनी भी चलाई हैं । अनुवादक।