Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 63
________________ तृतीय अंक। मसि आदि वाणिज्य और कृषिकर्मादिकी विधि वतलाकर समस्त पृथ्वीकी पालना की थी। और कल्पवृक्षोंके अभावमें प्रजाको स्वयं कल्पवृक्ष वन करके संतुष्ट किया था। अतएव उन वृषके (धर्मके) 'बढ़ानेवाले वृषभदेवको शतशः नमस्कार है। क्षमा-पश्चात् क्या हुआ? दया-तब वाग्देवीने क्रोधित होकर कहा कि, "जो मेरा अनादर करके अरहंत भगवानके भक्तोंके हृदयमेंसे दयाका हरण कराता है, उस मोहके अविनयको मै कदापि सहन नहीं कर सकती हूं। दये! तू प्रबोध महाराजके पास जाकर उन्हें यह सब वृत्तान्त सुना ।" सो माता! इसी लिये मै प्रबोध महाराजके समीप जा रही हूं। इस समय तू परीक्षाके साथ भगवतीके निकट जा। और प्यारी शान्ति ! आओ तुम मेरे साथ चलो । तुम्हारे साथ रहनेसे गिर कोई उपद्रव नहीं हो सकता है। [सव जाती है-पटाक्षेप] द्वितीयगर्भाङ्कः। स्थान राजा प्रवोधका शिविर । [प्रयोध राजाके समीप विवेक न्याय आदि यथास्थान बैठे हुए हैं। दया और शान्ति खड़ी है] प्रबोध-(दयासे ) दये! तुम्हें जो कष्ट भोगना पड़ा है, वह मैं सुन चुका । अब तुम कुछ भी खेद न करो मैं आज ही कलमें अपने वैरी मोहको परलोककी यात्रा कराऊंगा-अवश्य ही कराऊंगा। यदि उसे न मारूं, तो भगवती सरखतीके चरणकमल

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