Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 78
________________ ६६ ज्ञानसूर्योदय नाटक । न्याय-अहंकारका पतन होते हुए मदमात्सर्यादिका भी पराजय हो गया । यह सुनकर हठी मोहने अपने सैन्यके अतिशय बलवान योद्धा कामको आज्ञा दी, सो वह अपनी प्राणप्यारी रतिकी प्रीतिमें उलझा हुआ एक बड़ी भारी सेनाको लेकर युद्धक्षेत्रमें जा पहुंचा मत्तगयन्द । चंदन चंद्रकी चन्द्रिका चारु, ___ अनिन्दित सुन्दर मंदिर भायो । ., कोमल कामिनी कानन कुंज, कदंब-समीर सुगंधित आयो । माधवी मालतीमाल मनोज्ञ, , मलिन्दको वृन्द वसंत सुहायो । ' , यों चतुरंग चमू सजि संग, । अनंग रणांगनमें चढ़ि धायो । । उसे अपने वाणोंसे सुर असुरोंके सहित सम्पूर्ण संसारको कंपायमान करता हुआ देखकर प्रबोध राजाका शील नामका सुमट कायर होकर भागने लगा। वह मारे भयके विह्वल होकर ज्यों ही पीठ दिखाना चाहता था, त्यों ही विवेकने आकर कहा, शूरवीर शील! तुम्हें यह कायरताका कार्य शोभा नहीं देता है । मेरे सा मीप रहनेपर निश्चय समझो कि, तुम्हारा भंग नहीं होगा । इस लिये धैर्य धारण करके एक वार विचार वाणको खूब संधान करके चलाओ, और कामको यमराजके घर भेज दो। शीलने विवेकके १ भ्रमर । २ सेना । ३ कामदेव ।

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