Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
View full book text
________________
ज्ञानसूर्योदय नाटक । जहँ अनेक नरेश सुरेशसे। हरि प्रजापति और महेशसे । विलयमान भये सब ही अरे।
शरण कौन तहाँ मन! वावरे ।। मन-भगवती! कोई भी तो शरण होगा ? अनुप्रेक्षा-हां एक है। मन-कृपाकरके बतलाओ कि, वह कौन है ? अनुप्रेक्षा-सुनो,
चौवोला। तेन तरुवरसों सघन, दुःखके,
हिंस्र पशुनसों मांचा है। बुधि-जल-विन सूखो, आशाकी,
विकट अनलमय आंचा है। नाना कुनयमार्गसों दुर्गम, . __ यह भववन गुरु जांचा है। यामैं पथदर्शक शरण्य इक,
'जिनशासन' ही सांचा है। मन-कुछ जीवनका भी उपाय है?
१ तत्थ भवे किं सरणं जत्थ सुरिंदाण दीसए विलओ। . - हरिहरवंभादीया कालेण य कवलिया जत्थ ॥ (खा० का०) २ किं तदेहमहीज-राजिभयदे दुःखावलीश्वापदे विश्वाशाविकरालकालदहने शुण्यन्मनीपावने । नानादुनयमार्गदुर्गमतमे इग्मोहिनां देहिनां जैनं शासनमेकमेव शरणं जन्माटवीसंकटे॥

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115