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ज्ञानसूर्योदय नाटक । तो अतिप्रसंग दोषसे गधेके सींगोंका भी प्रतिभास मानना पड़ेगा। सारांश यह है कि, सीपमें चांदीका भ्रम तब होता है, जब चांदी कोई एक पदार्थ है । यदि चांदी अवस्तुस्वरूप होवै, उसे किसीने देखी सुनी नहीं होवै, तो तद्रूप भ्रम नहीं हो सकता है । इससे सिद्ध है कि, अद्वैतमें जो द्वैतका प्रतिभास होता है, वह द्वैत कोई वस्तु अवश्य ही है । श्रीसमन्तभद्रस्वामीने भी कहा है,
अद्वैतं न विना द्वैतादहेतुरिव हेतुना।
संज्ञिनः प्रतिषेधो न प्रतिषेध्याहते क्वचित्।।(आ.मी.) अर्थात् द्वैतके विना अद्वैत नहीं हो सकता। जैसे कि हेतुके विना अहेतु । अर्थात् जब तक हेतु नही होगा, तब तक उसका प्रतिषेध करनेवाला अहेतु प्रसिद्ध नहीं हो सकता । क्योंकि नामवाले पदार्थोंका प्रतिषेध प्रतिषेध्यके विना नहीं हो सकता है । अतएव जो २ नामवाले पदार्थ है, उनका निषेध उन पदार्थोंके स्वयं अ.. स्तित्वके विना कहीं भी नहीं हो सकता है। जैसे संसारमे पुप्पी कोई एक वस्तु है, तब ही 'आकाशपुष्प' संज्ञा प्रसिद्ध है । यदि पुष्प ही कोई पदार्थ नहीं होता, तो 'आकाशपुष्पसंज्ञा' नहीं हो सकती । इसी प्रकारसे द्वैतके विना अद्वैत ऐसा जो प्रतिषेधरूप' शब्द है, वह नहीं हो सकता।" यह सुनकर उस मीमासक विद्याने भी मेरा अनादर किया।
पुरुष-तब?
अष्टशतीमै उसको छोड़कर आगे चली थी कि, मार्गमें न्यायविद्यासे साक्षात हो गया। उसने भी पूछा, तुम्हारा क्या स्वभाव है, मैने पूर्वपठित श्लोक कहकर अपना खरूप प्रगट किया