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रोला।
तृतीय अंक। अनुप्रेक्षा-किसी शान्तिस्वरूप विषयमें लगा दो, जिसमें फिर मनोविकार उत्पन्न न होवे । ___ मन-ऐसा शान्तिका विषय क्या है ? । अनुप्रेक्षा-गुरुदेवका उपदेश चाहे जिसको नहीं बतलाना चाहिये । परन्तु तू अतिशय दुखी है, इसलिये बतलाती हूं किसमरस सुखका देनेवाला, सत्र सुलक्षण ।
अविनाशी आनन्दयंत्र, जगमित्र विलक्षण । भवभयतरु-हर-दात्र, सार सव तंत्रनको गण। - अहतमंत्र पवित्र, कहो नित अहो विचक्षण! ॥
मन--(विचार करके ) हे भगवती! आपकी कृपासे मै नरकमें पड़ते २ वच गया आपको धन्यवाद है।
अनुप्रक्षा--यह भोला संसार अनित्य पदार्थोको नित्य समझ कर भ्रमण कर रहा है । फिर उसमें यह वेचारा पराधीन जीव जिनेन्द्र भगवानके बतलाये हुए आत्माके चैतन्य चिस्वरूपको कैसे देख सकता है।
[राग्यका प्रवेश । वैराग्य-(पढना है)
दोहा । विद्युतवत अतिशय अथिर, पुत्र मित्र परिवार। मूद इन्हें लखि मद करत, बुधजन करत विचार॥ १-कलितसकलतन्त्रं नित्यमानन्दयन्त्रं
भवमयतरदानं सत्त्वपीयूपपात्रम् । जगदकलसुमनं सर्वविश्वैकमित्रं
समरससुग्वसत्रं तं भजाईन्तमन्त्रम् ॥ २ नहावर्त । ३ दाता-हँसियाः। ४ शास्त्रोका-सिद्धान्तोंका।