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ज्ञानसूर्योदय नाटक । सेनापर टूट पड़े । यह देख तर्कविद्या उठी, सो उसने विना किसीकी सहायताके अकेले ही उन सब आगमोको क्षणमात्रमें जीत लिया । तब वे सब आगम हतगर्व होकर चारों दिशाओंमें माग गये । उनमेंसे सिंहल, पारसीक, शरनर, धन्यासी (25 आदि देश तया नगरोंमें बुद्ध आगम जा बसा, सौराष्ट्र (सोरठ), मारवाड़, और गुर्जरदेगमें श्वेताम्बर आगम विहार करने लगा. पांचाल (पंजाब) और महाराष्ट्रमें चार्वाक चला गया,
और गंगापार, कुंकुण (कोकण ) तथा तिलंग देशोंमें जहां कि प्राय. म्लेच्छ लोग रहते हैं, मीमांसक और शैव मछली मांस आदि खानेवाले वनकर आनन्दपूर्वक विचरण करने लगे।
वाग्देवी-यह बहुत ही अच्छा हुआ । अन्तु फिर मोहती क्या क्या हुई?
मैत्री हे देवि! यह तो विदित नहीं है । वह कलियुगके साथ वाराणसी छोडकर कहीं अन्यत्र छप रहा होगा।
वाग्देवी-तब तो समझना चाहिये कि, अभी अनर्थका अं. कुर नष्ट नहीं हुआ है । राजनीतिमें कहा है कि, "अपने कल्या णकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको शत्रुने अकुरको भी नहीं बचाना चाहिये । क्योंकि यदि वह वना रहता है, तो सुदैवसे समय पाकर सैकड़ों शाखावाला बलवान वृक्ष हो जाता है।" हां! और यह भी तो कहो कि, इन मोहादिके पालनेवाले पिताकी अर्धान् मनकी क्या गति हुई? ५ अरातेरकरोऽप्यल्पो न रभ्यः श्रियमीप्सुना। स्वितः कदाचित्सदैवात् शतशाखो भवेद्भुवम् ॥