Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 79
________________ तृतीय अंक। ६७ इस प्रकार धैर्य दिलानेपर कामके सम्मुख होकर कहा, अरे चांडाल काम! तू वड़ा पापी है, जो अशुचिरूप नारीको निर्मल मानता है। मत्तगयन्द। "थूक कफादिको मन्दिर जो मुख, चन्दसों ताहि दुचन्द वनावें। मांसके पिंड उरोज तिन्हैं, ___ कलशा कहि कंचनके सुख पावें ।। मूत्रमलावृत जंघनको, उपमा गजमुंडकी दै न घिनाचें । यो अति निन्दित नारिस्वरूप, ___ कवीश बढ़ाय विचित्र वतावें ॥ और भी कवित्त (३१ मात्रा) कचर्कलाप यूकानिवास मुख, चाम-लपेट्यो हाइसमूह । मांसपिंड कुच विष्टादिककी, पेटी पेट भरी बदवूह ।। 'स्तनी मांसग्रन्थी कनककलशावित्युपमितौ मुखं श्लेष्मागारं तदपि च शशाङ्केन तुलितम् । नवन्मूत्रक्ति करिवरकरस्पर्द्धिजघनं मुहर्निन्द्यं रूपं कविजनविशेषैर्गुरुकृतम् ॥ (भर्तृहरिः) i कचा यूकावासा मुखमजिनवद्धाथिनिचयः कुची मांसोछायी जठरमपि विष्टादिघटिका। मलोत्सर्गे यन्त्रं जघनमवलायाः क्रमयुगं तदाधारस्थूणे किमिह किल रागाय महताम् ।। (पद्मनन्दि प० वि०) १ दुगुना अच्छा।२ स्वन ३ वालोंकासमूह। ४ जू लीखके रहनेका ठिकाना । - -

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