________________
तृतीय अंक।
इसके सिवाय "जो अपने अनेक पुण्योंको नष्ट करके मेरे पा__ पबंधोंको काटता है, उसीपर यदि मैं रोप करूं, तो मेरे समान अ___ धम कौन है?" क्षमाने इस प्रकारके वचन वाणोंसे क्रोधको हरा दिया।
। वाग्देवी-बहुत अच्छा हुआ। एक बड़ा भारी सुभट मारा 'गया। अच्छा फिर?
न्याय-क्षमाके ऊपर पुष्पोंकी वर्षा हुई । और उधर प्रज्वलित चित्त मोहने लोभको बुलाकर कहा कि, हमारी सेनामें तुम ही सवसे श्रेष्ठ शूरवीर हो । इसलिये शत्रुओंको जीतनेके लिये अव तुम ही तयार हो जाओ । यह सुनकर लोभ महाशय अपनी तृष्णा नारीको हृदयसे लगाकर तथा राग और द्वेष इन दोनों पुत्रोंको साथ लेकर और अपने प्रतिपक्षी संतोषको तिनकाके समान भी नहीं समझकर विवेकके सम्मुख हुए और बोले-"संसारमें जितनी सुलभ वस्तुए हैं, मै उन्हें पहले ही प्राप्त कर चुका हूं, तथा जो दुर्लभ है, वे भी मैने पाली है। अब इनसे भी सुन्दर और 'जो अपरिमित वस्तुएं हैं, उन्हें यत्न करके पा लेता हूं।" यह सुनकर विवेक बोला
मनहर। दायादार चाह औ कुपूत फूंक डा जाहि,
मूसवेको चोर नित चारों ओर घूमें हैं। ..१ हत्वा खपुण्यसन्तानं मदोपं यो निकृन्तति ।
तस्मै यदि च रुष्यामि मदन्यः कोऽपरोऽधमः॥ २ दायादाः स्पृहयन्ति तस्करगणा मुष्णन्ति भूमीभुजो
गृहन्ति च्छलमाकलय्य हुतभुग्भस्सीकरोति क्षणात् । अम्भः हावयते क्षितौ विनिहितं यक्षा हरन्ते हठात् दुप्पुत्राः सततं नियन्ति निधनं धिग्ववधीनं धनम् ॥
-
-
-
-