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ज्ञानसूर्योदय नाटक। प्रवोध-अभिषेक, पट्टबंध, और चामराटिक क्या राज्यचिन्ह नहीं है?
न्याय-नहीं; अभिषेक पट्टबंध और वातव्यजन ये चिन्ह तो व्रण अर्थात् फौड़ेके भी होते है ।
प्रबोध-(हॅसकर ) अस्तु, यह विनोदका समय नहीं है । संग्रामभेरी बजने दो और घोर युद्धके लिये तयार हो जाओ। सम्पूर्ण सामन्त-जो आज्ञा ।
युद्धको तयारी] समस्त सुरासुरोंके मनोंको क्षोभ उत्पन्न करनेवाली संग्रामभेरीका नाद सुनकर सम्यक्त्व, विवेक, संयम, संतोप, संयम, संवेग, शील, शम, दम, दान आदि सुभट अपने २ परिवारसहित तयार हो गये और क्षमा, परीक्षा, श्रद्धा, दया, शान्ति, मैत्री, भक्ति आदि विद्याधरीभी अपने २ विमानोंपर आरोहण करके चल पड़ी। इनके सिवाय श्रीमती तर्कविद्या स्याद्वादसिंहपर सवार होकर सप्ततत्त्व, पद्रव्य, और प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाणसहित जय पराजयका कुतूहल देखनेकी अभिलापासे प्रगट हुई। इत्यादि प्रवल सैन्यके साथ, राजा प्रबोधने निपुण ज्योतिषियोंके वतलाये हुए उत्तम मुहूर्तमें स्त्रियोंके "जय है) प्रसन्न होओ, वृद्धिको प्राप्त होओ" आदि मंगल शब्द १-अभिषेकः पटवन्धो वातव्यजनं व्रणस्यापि ॥
२ फौड़ेका अभिषेक (जल ढारना), पवध (पट्टी वाधना), और वातव्यजन (पखेसे हवा करना) ये तीनों चिन्ह होते है। कैसा अच्छा लेप है।
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