________________
तृतीय अंक।
प्रवोध-बस, यही स्थान हम लोगोंके निवासके योग्य है । अतएव सेनाका पड़ाव यहीं डालना चाहिये ।
सेनापति-मेरी भी यही इच्छा है । सैन्यका शिविर यहीं डालना अच्छा है।
पञ्चमगर्भावः। स्थान-प्रबोध और मोहके शिविरसे
थोड़ी दूर एक मैदान । मैत्री सुसज्जित सैन्यकी ओर देख देखकर विचार करती है।] मैत्री-यह मार्ग स्पष्ट है। इसे सब लोग जानते है कि, वैर, वैश्वानर (अमि), व्याधि, वल्म (भोजन), व्यसन और विवाद ये छह वकार महा अनर्थक करनेवाले होते हैं। पुरुषोंको बढ़नेवाला थोडासा भी वैर छोटा नहीं गिनना चाहिये । क्योंकि आगकी छोटीसी भी चिनगारी बढ़कर सारे बनको भस्स कर डालती है। (आंखोंमें आँसू भरकर) हे प्राणियो! यह कुटुम्बशोकरूपी शिल्य दुर्निवार है । विवेकके लाखों वचनोंसे भी इसका उच्छेद नहीं होता है। कहा भी है कि “जब सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, समुद्र जैसे बड़ों बड़ोंका नाश होता है, तब काल आनेपर बेचारा दुर्बल मनुष्य क्या वस्तु है, जो न मरे ? यह सब जानते हैं, तो भी आश्चर्य है कि, समान प्रीति और धनकी चिन्ताको विस्तारनेजसके अपने सुहृदजनोंकी-बन्धुवर्गोंकी मृत्यु सुनकर शोक हृदयको वारंवार पीड़ित करता है । परन्तु इससे क्या? जो १ यदि ध्वंसोत्यन्तं तपनशशिभूसिन्धुमहताम् ।
तदा काले कोचा न पतति पुनः शीर्णतनुमान् ॥ तथाप्युचैः शोको व्यथयति हदं कोऽपि सुहृदामहो वारंवारं समरतिधनार्तिप्रसरताम् ॥