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. द्वितीय अंक।
.[ बुद्धागमका प्रवेश ] बुद्धागम-(बुद्ध भक्तोंको उपदेश करता है ।) संसारमें जितने पदार्थ हैं, ऐसा प्रतिभासित होता है कि, वे सब क्षणिक हैं। नवीन -२ उत्पन्न होते हैं, और पूर्व पूर्वके विनष्ट होते जाते हैं। अर्थात् सम्पूर्ण पदार्थ सर्वथा क्षणस्थायी है । एक पदार्थ पहले क्षणमें उत्पन्न होकर दूसरे क्षणमें नष्ट हो जाता है । जैसे दीपककी शिखा एकके पश्चात् एक उत्पन्न होती और नष्ट होती जाती है । जो शिखा अमी क्षणमात्र पहले थी, वह नहीं रहती है, उसके स्थानमें दूसरी उत्पन्न हो जाती है । अतएव प्यारे शिष्यो! जीवसमूहका घात करनेवालेको, मांसभक्षण करनेवालेको, स्त्रियोंके साथ खेच्छाचारपूर्वक रमण करनेवालेको, मद्यपायीको, और परधन हरण करनेवालेको कोई पाप नहीं लगता। क्योंकि आत्मा भी अन्य पदार्थोंकी नाई क्षणक्षणमें वदलता है । इससे जो आत्मा कर्म करता है, वह जब दूसरे क्षणमें रहता ही नहीं है, तब किसका पुण्य और किसका पाप.?
शान्ति-मला, विचारवान पुरुष इस असंभव बातको कभी
१ विभान्ति भावाः क्षणिकाः समग्राः
परं सृजन्ते हि विनाशवन्तः। शिखेव दीपस्य परां सृजन्ती
खतः खयं नाशमुपैति सा द्राक् ॥१॥ २ ततो प्रतां जीवकुलं न पापं
समझतां मांसगणस्य पेशीः। दारान् यथेष्टं रममाणकानां पिवत्सु मा हरतां परस्त्रम् ॥२॥