Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 37
________________ द्वितीय अंक। हिंसा-जो आज्ञा । मैं खभावसे ही संसारको पीड़ित करनेवाली हूं। फिर श्रीमानकी आज्ञा पानेपर तो कहना ही क्या है ? [भयंकर व्याघ्रीके समान हिंसा मोहराजपर कटाक्ष फैकती हुई अतिशय . कोमल दयारूप हरिणीकी खोजमें जाती है परदा पड़ता है.] पञ्चमगादः। स्थान-क्षमाका घर। [क्षमा रो रही है और शान्ति उसके पास बैठी है।] क्षमाहे प्यारी बेटी! अपनी इस अभागिनी माताको छोड़कर तू कहां गई? हाय कमलनयनी! हाय कुन्दकलिकाके स'मान सुन्दर दन्तपंकतिवाली! तेरे विना अब मैं कैसे जीऊंगी? हाय, यह धर्मवृक्षकी जड़ किसने उखाड़के फेंक दी! हाय मेरा सर्वनाश हो गया। शान्ति-(अंचलसे क्षमाके ऑसू पोंछती है) माता! चिन्ता तथा आकुलता मत करो। आपकी बेटी सुखपूर्वक होगी। । क्षमा-बेटी! विधाताके प्रतिकूल होनेपर सुख कैसे मिल सकता है जानकीहरन वन रघुपति गमन औ, __ मरन नरायनको वनचरके वानसों। वारिधिको बंधन मयंकअंक क्षयीरोग, शंकरकी वृत्ति सुनी भिक्षाटनवानसों। + १ जरत्कुमार भीलके वेपमें थे। २ भीख मांगनेकी आदतसे।

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