Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 30
________________ ज्ञानसूर्योदय नाटक। वीर सवैया (३१ मात्रा) मेरे सम्मुख कौन निशाकर, कौन वस्तु है तुच्छ दिनेश । राहु केतुकी वात कहा है, गिनतीमें नहिं है नागेश ॥ सत्य कहूं हे मोहराज! नहिं, डरों जरा है कौन यमेश । केवल भौंहोंके विकारसे, जीतों मैं सुरसहित सुरेश ॥ और भीतौलों विद्याभ्यास अरु, विनय-धर्म-गुरुमान । जौलों नहिं धारण करूं, मैं अपनो धनुवान ।। राजा-प्रिय अहंकार! ठीक है, मैं तुम्हारे बलसे जीतनेकी अभिलाषा रखता हूं। परन्तु समुदाय कठिन होता है। हमें यह नहीं भूल जाना चाहिये कि, यदि निर्बल पुरुष भी बहुत हों, तो बड़े बलवानको निश्चयपूर्वक पराजित कर डालते हैं । छोटी २ होनेसे क्या अगणित चीटियां सर्पको परास्त नहीं कर डालती हैं? अस्तु अव चलो, यहासे सबके सब वाराणसी नगरीको चलें । वहांसे अपने इच्छित कार्यकी मंत्रणा करेंगे। [सब जाते है परदा पड़ता है। इति श्रीवादिचन्द्रसूरिविरचिते श्रीज्ञानसूर्योदयनामनाटके प्रथमोक।

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