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ग्रन्थका परिचय।
वैष्णवसम्प्रदायका एक प्रबोधचन्द्रोदय नामक प्रसिद्ध नाटक है। वह श्रीकृष्णमिश्रयति नामके किसी पंडितका बनाया हुआ है । उसके तीसरे अंकमें एक दिगम्बर (क्षपणक) पात्र बनाके उसके द्वारा निःसीम निन्ध कार्य करवाये है, और दिगम्बर सिद्धान्तका मजाकके तौरपर थोड़ासा खंडनसा किया है । उक्त अं. कको वांचकर ग्रन्थकर्ताके मलिन विचारोंपर बड़ी ही घणा उद्वेग
और क्रोध आता है । हमारा अनुमान है कि, शायद प्रबोधचन्द्रोदयको पढ़कर ही श्रीवादिचन्द्रसूरिने ज्ञानसूर्योदयकी रचना की है, और इसके द्वारा श्रीकृष्णमिश्रके अनुचित कटाक्षोंका कुछ वदला चुकाया है । परन्तु हम कहते है कि, उसके दशांशका भी बदला इस ग्रन्थसे नहीं चुक सका है । क्षपणकको (जैनमुनिकों) कापालिनीके हृदयसे चिपटाना, शराब पिलाकर कापालिनीके मुखके ताम्बूलसे उसके नगेका दूर करना, तथा लिंगविकारको मयूरपिच्छिसे आच्छादित करना, आदि घृणित और झूठी रचना करनेमें प्रबोधचन्द्रोदयके कर्त्ताने जो साहस किया, वह साहस वादिचन्द्रजी नहीं कर सके । वदला चुकानेके लिये ही उन्होंने इसकी रचना की, पर सफलता नहीं हुई । शठं प्रति शाठ्यं कुर्यात् की, नीतिका उनसे पूरा २ अनुकरण नहीं हो सका । जान पड़ता है चञ्चञ्चन्दनकेशशङ्कितभुजाका श्लोक कहकर ही उनका वैष्णवकोप शान्त हो गया । अस्तु । __ प्रबोधचन्द्रोदय नाटक ज्ञानसूर्योदयसे पहले बना है, ऐसा मा