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प्रथम अंक। अत्यन्त अभाव ही है, तब उसका नाश होना कैसे कहा जा सकता है? फिर भय किस बातका ।
दंभ-अरे पापी! असत्य मत बोल! विष्णुका शील प्रसिद्ध है। मुनते हैं, एकवार वालब्रह्मचर्यके प्रभावसे उन्हें यमुनाने मार्ग दिया था। +विलास-मेरी समझमें तो एसा कहना “ मेरी माता और बंध्या" कहनेके समान स्ववचनव्याघातक है । क्या यह तुमने नहीं सुना है कि,
वृन्दावनको कुंज जहँ, गुंजत मंजु मलिन्द । मधन-पीन-कुच-युवतिसँग, रमत रसिक गोविन्द ॥
दंभ-अजी! गोविन्द गोपिकाओंमें आसक्त होनेपर भी 'ब्रमचारी थे।
विलास-निम्सन्देह ! इसीलिये तो आपका वाक्य खवचनविघातक है।
दंभ-अस्तु, और यह भी तो कहो कि, माया उनमें एकाएक कैसे अनुरक्त हो गई।
विलास-स्त्रीके आसक्त होनेमें क्या देरी लगती है ? देखो "त्रियोंका चित्त स्वभावसे ही चंचल होता है, फिर समय पड़नेपर को पूछना ही क्या है? जो विना मद्यपान किये ही नृत्य करता है, वह नशेमें चूर होनेपर क्या न करेगा?"
मोह-दंभ महाशय! इस समय इस विषयान्तरको जाने दीजिये । अच्छा विलास! फिर क्या हुआ?
विलास-खामिन् ! हरि हर और ब्रह्मासे मायाने कहा "मोह