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ज्ञानसूर्योदय नाटक । लीलावती-(विलासके पास आकर) आइये महाशय! राजकुलसे वार्तालाप कीजिये। विलास महाराजा मोहराजकी जय हो! जय हो! जय हो! मोह-प्रिय विलास! कहो क्या समाचार है ? विलास-महाराज! जगन्मोहिनी मायाको देखते ही हरि हर और ब्रह्माने इस प्रकार खागत करते हुए कहा
मत्तगयन्द । "भौंहनतें द्वितियाको मयंक, विलोकनतें अरविन्द पलाया। दंतनतें मुकतानकी पंकति, आननतें वर इन्दु लजाया। वेणीसोव्याल,उरोजसों चक्र,तथाकटित हरिभाजि छुपाया। ऐसीअनूपम रूपकी खानि!, पधारहु! आव!मानिनिमाया। __ आज किस उद्देश्यसे यहां आनेकी कृपा की । बहुत दिनोंके पश्चात् तुम्हारे दर्शन हुए हैं। कहो, कुशल तो है ? और यह तो कहो, आजकल दुर्बल क्यों हो रही हो? यदि कोई कार्य हो, तो कहो?" इसके पश्चात् उन तीनों देवोंने अपने आसनसे उठकर मायाके रूपमें अतिशय अनुरक्तचित्त होकर नानाप्रकारके विभ्रम विलास करनेवाली उस मायाका आलिंगन कर लिया । इधर प्रेममयी माया भी आनन्दसे उनकी गोदमें जा बैठी।।
दम्भ-क्यों जी! जव मायाका आलिंगन कर लिया, त उन्हें अपने शीलभंगका क्या कुछ भी भय नहीं हुआ?
विलास-(मुसकुराकर) महाशय! जिस पदार्थका अस्तित्व होता है, उसीका विनाश होता है । असत् पदार्थका विनाश कहीं भी नहीं सुना है । उनके जब आकाश पुष्पके समान ब्रह्मचर्यका