Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 23
________________ प्रथम अंक। (काम और रतिका प्रवेश ।) काम-ओह ! विवेक बड़ा निरंकुश हो गया है। यह मेरा माहात्म्य नहीं जानता है, इसीलिये न जाने क्या वककर चला गया। रति-प्रभो! आपका क्या माहात्म्य है ? कहिये, मै भी तो सुन लूं। 1 काम-संसारमें जितने मनुष्य कुमार्गगामी होते है, वे सव मेरी ही कृपासे होते हैं । मेरा इससे अधिक और क्या माहात्म्य सुनना चाहती हो? सुनो,-पूर्वकालमें पद्मनाभिने द्रोपदीके लिये अर्ककीर्तिने सुलोचनाके लिये और अश्वग्रीवने स्वयंप्रभाके लिये जो बड़े २ युद्ध किये है तथा ब्रह्माजीने अपनी पुत्री सर स्वतीके साथ, पराशर महर्पिने मछलीके पेटसे उत्पन्न हुई यो। जनगंधाके साथ, और व्यासजीने अपनी भाईकी स्त्रियोंके साथ जो रमण किया है, सो सब मेरे बाणोंसे हत-आहत होकर किया और भी शैवमतमें कहा है कि मेरे वाणोंसे आहत होकर सूर्यदेव कुन्तीपर, चन्द्रमा अपने गुरुकी स्त्री तारापर, और इन्द्र गौतमऋपिकी स्त्री अहिल्यापर आसक्त हुआ था । अतएव हे कान्ते ! मनुष्य, मुनि, और देवोंके पराजय करनेके कारण मै त्रै १ ज्वलनजटितकी पुत्री। ___ २ व्यासजी जिस योजनगंधाके उदरसे पैदा हुए थे, उसके गर्भसे पीछे जा सान्तनुके वीर्यसे चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामके दो पुत्र हुए थे। ये दोनों जव निःसन्तान मर गये, तव वशकी रक्षाके लिये व्यासजीने उनकी स्त्रियोंके (भ्रातृवधुओंके ) साथ संभोग किया था, ऐसी महाभारतमें कथा है। ३ सूर्यः कुन्तीं विधुर्नारी गुरोः शक्रश्च गौतमीम् । अयासीदिति वा प्रायो मद्विकारहता जनाः॥

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