Book Title: Gyansuryodaya Natak
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 17
________________ प्रथम अंक। है । देखो, दोयजके चन्द्रमाको सब कोई देखते हैं, परन्तु पूनोंके चन्द्रको कोई नहीं देखता है। सूत्रधार-(रगमडपमें) “ इस चैतन्यखभाव और अनाद्यनंत आत्माके सुमति और कुमति नामकी दो मानिनी स्त्रियां हैं । इन दोनोंसे प्रेम करके-दोनोंमें आसक्त रहकर इसने दो कुल उमन्न किये है। पहला कुल जो सुमतिसे उत्पन्न हुआ है, उसमें प्रबोध, विवेक, संतोप और शील ये चार पुत्र है, और दूसरा कुल जो कुमति महाराणीके गर्भसे हुआ है, उसकी मोह, काम, क्रोध, मान और लोभ ये पांच सुपुत्र शोभा बढ़ाते है।" नटी हे आर्यपुत्र ! आत्मा यदि पहले सुमतिमें आसक्त था, तो फिर कुमतिमें कैसे रत हो गया ? { सूत्रधार-प्रिये! वलवान कर्मके कारणसे सब कुछ हो सकता है। देखो, शास्त्रमें कहा है कि:-- लब्धात्मवृत्तोऽपि हि कर्मयोगाद् . भूयस्ततो भ्रश्यति जीव एषः। लब्धाः स्वकीयप्रकृतेः समस्ता श्चन्द्रः कलाः किं न मुमोच लोके ।। अर्थात्-"यह जीव अनेकवार आत्माके स्वभावकी प्राप्ति कर१ शुक्लपक्षकी दोयजको जव चन्द्रमा निकलता है, तब १५ दिनके बाद निकलता है. अर्थात् उसके पहले अँधेरे पाखमें उसके दर्शन नहीं होते हैं। इमलिये अहटपूर्व होनेके कारण उसे सब देखते हैं । परन्तु पूर्णिमाके चन्द्रमाको कोई नहीं देसतां । क्योंकि उसके पहले १५ दिनसे वह हररोज दिखा करता है। रोज २ दिखनेसे उसमें प्रीति नहीं रहती है। २ पूर्वकालकी स्त्रियां अपने पतिको 'आर्यपुत्र' कहकर सम्बोधन करती थीं।

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