Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 161
________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् 125 पादं जानु कटिं यावदर्चायां वाहनस्य दृक् ॥ ६६ ॥ छत्रं च कुम्भपूर्णं च करयोस्तस्य कारयेत् । करद्वयं तु कर्त्तव्यं तथा विरचिताञ्जलिः ॥ ६७ ॥ यदुश्च भगवान् पृष्ठे छत्रकुम्भधरौ करौ । किञ्चिल्लम्बोदरः कार्यः सर्वाभरणभूषितः ॥ ६८ ॥ इति पन्नगाशनः । " गरुड देव मरकत मणि के जैसी कान्तिवाला अर्थात् हरे रङ्ग का उल्लू के जैसी नाक वाला, चार भुजा वाला, गोलाकार नेत्र और गोलाकार मुख वाला, गीध पक्षी के जैसा ऊरु जानु और चरण वाला, दो पाँखों वाला, सुवर्ण के जैसी कान्ति वाला, मयूर के कलर जैसी पाँखों वाला, ऐसा नवताल के मान से गरुड देव करना । पैर, जानु या कमर तक मूर्ति के वाहन की दृष्टि रखना। उसके एक हाथ में छत्र और दूसरे हाथ में घड़ा बनाना तथा दूसरे दोनों हाथ अञ्जलिबद्ध अर्थात् नमस्कार मुद्रा वाला करना । छत्र और घड़ा धारण करने वाले दोनों हाथ विष्णु भगवान के पृष्ठ भाग में रखना, कुछ पेट लम्बा करना और सब आभूषणों से सुशोभित करना । Garuda = Taksharya, the Garuda, mount of Vishnu, looks like an emerald in radiance, with a 'nose'/beak like an owl, four arms, a round face and round eyes ( 64 ). His thighs, knees and feet are like a vulture's, and he has two wings with the glow and lustre of a pile of gold and the beauty and radiance of a peacock's feathers. (65). A statue of Garuda should be made in the 9 tala scale. It is conventional to keep the line of vision or the gaze of the vahan (mount) on the feet or the thighs or the hips of its deity's idol. (Thus, a Garuda image should look at Vishnu's feet, thighs or hips, and no higher) (66). Depict Garuda with a chhatra (canopy or an umbrella) in one hand and a full waterpot the purna-kumbha -in the other, and arrange the second pair of hands in the anjali or salutation position (where the two hands join together). (67). -

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